Friday, April 29, 2011

for Ms. Kiran Meetu Srivatava.... - 30/04/2011

कई दिन हुए, तुम्हें यूँ ही उदास देखता हूँ मैं...
क्या अब भी तेरे ख्यालों में, आया करता हूँ मैं...
कहा था, ये दिल मत लो, परेशां खुद मैं इससे,  
क्या दर्द बन, अब भी तुम्हें रुलाया करता हूँ मैं....
सुर्यदीप - ३०/०४/२०११ 

Monday, April 25, 2011

For Mr. Mahohar Chamoli.. - Tanaav aur Uljhan....

"तनाव की नाव बिना पतवार की बहती हुई होती है.. वो कहाँ जायेगी, कितना जाएगी....और कहाँ जाकर ठहरेगी....ये तो उलझनों से बहती हवा को महसूस करके ही बताया जा सकता है... उलझनों की हवा जितनी तेज़ होगी...तनाव की नाव...उतना ही भटकेगी और...अंत में शून्य रुपी भंवर में समाकर विलुप्त हो जाएगी... उपाय..... कभी भी उलझनों से न उलझो....बस !!!"  - suryadeep ankit tripathi - 25/04/2011


Monday, April 18, 2011

for DDN .. Sai baba..

साईं चरन रज, मिटे कलेशा,
मम वन्दन, इन युगल चरन को,
बलिहारी, जो पाऊँ, चरण रज
धन्य करूँ इस जीवन को  - 29/12/2010

Sunday, April 17, 2011

maa ....... for Mr. Pravesh - 18/04/2011

वो झपकियाँ, वो थपकियाँ, 
वो आधी-अधूरी नींद का, एक ख्वाब सुनहरा..
वो लोरियां, वो कहानियाँ, 
वो गोद में रख के सर, ढक लेना आँचल से, 
वो पा की झिडकियां, वो कैद सी खिड़कियाँ, 
वो डांट से सहम के, चिपक के रोना फिर तुझसे,
वो प्यार तेरा, दुलार तेरा, 
वो अपना न खाकर, मुझको खिलाना प्यार से, 
अहसास ये, न जाने किस पल खो गया,
बचपन छोड़ कर, क्यों जवान मैं हो गया....
क्यों जवान मैं हो गया.......
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १८/०४/२०११  

Friday, April 15, 2011

for Pagalkhana - Pratibimb ji.... ham paagal hain...

हम पागल हैं, तुम पागल हो, 
पागल ये सारा ज़माना है, 
दर्द नहीं, तकलीफ नहीं जहाँ, 
ऐसा इक प्यारा कोना है ,, 
भिन्न- भिन्न हैं लोग यहाँ पर, 
भिन्न - भिन्न हैं टोलियाँ, 
पर जब सब मिल यहाँ हैं जाते, 
करते हंसी, ठिठोलियाँ,
एक दूजे की टांग ये खींचे, 
एक दूजे के बाल भी,
पागलपंती करे ये थोड़ी, 
थोड़ी प्यार संभाल भी, 
हम पागल हैं, तुम पागल हो, 
पागल ये सारा ज़माना है, 
दर्द नहीं, तकलीफ नहीं जहाँ, 
ऐसा इक प्यारा कोना है ,, 
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १७/०४/२०११ 

for Mr. Sanjay Kaushik, Sarthak Tours India - Satya - Astya

प्रथम मार्ग सत मान रे, लक्ष्य मिले धरि धैर्य, 
असत राह कंटक रहेगिरे मान अरु शौर्य, 
पुलिक सतसंगत पुष्प सदा, सत्य सरोवर माहि, 
असत तड़ाग बसी बैर मगर, गरल सर्प मुख माहि, 
अर्थात - सत्य वो प्रथम मार्ग है, जिसे हमें अपनाना चाहिए, इस मार्ग पर चलते रहने से मंजिल जरूर मिलती है, लेकिन ये मार्ग आपकी धैर्य की परीक्षा लेता है. और वहीँ दूसरी और असत्य का मार्ग काँटों से भरा हुआ है, जिस पर चलकर हमें अपना मान सम्मान और शौर्य खोना पड़ता है. इसी प्रकार सत्य रुपी सरोवर में उज्जवल पुष्प हमेशा ही पुलकित होते रहते हैं, क्योंकि उन्हें सत्संग की खाद और जल मिलता रहता है. लेकिन असत्य के तालाब में हमेशा मगरमच्छ रुपी बैर ही रहा करता है, जिस प्रकार सर्प के मुख में विष.  "शुभ" सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १६/०४/२०११ 

Thursday, April 14, 2011

for Mr. Ajit Shwhney - NAVRANG


for Mr. Sudarshan Diwan....


सुदर्शन जी...बहुत खूब.... 
"हम जली राख से चिंगारी कोई उठा लेंगे,  
तेज जज्बात की आँधी से इसे सुलगा लेंगे, 
ख़त्म न होने कभी देंगे, तेरी याद को हम, 
लोग पूछेंगे पता तेरा, तो दिल अपना खोल देंगे हम,, 
 सुर्यदीप - १४/०४/२०११ 

Wednesday, April 13, 2011

Suryadeep Ankit Tripathi - Wrote on Corruption -2