"तनाव की नाव बिना पतवार की बहती हुई होती है.. वो कहाँ जायेगी, कितना जाएगी....और कहाँ जाकर ठहरेगी....ये तो उलझनों से बहती हवा को महसूस करके ही बताया जा सकता है... उलझनों की हवा जितनी तेज़ होगी...तनाव की नाव...उतना ही भटकेगी और...अंत में शून्य रुपी भंवर में समाकर विलुप्त हो जाएगी... उपाय..... कभी भी उलझनों से न उलझो....बस !!!" - suryadeep ankit tripathi - 25/04/2011
अर्थात - सत्य वो प्रथम मार्ग है, जिसे हमें अपनाना चाहिए, इस मार्ग पर चलते रहने से मंजिल जरूर मिलती है, लेकिन ये मार्ग आपकी धैर्य की परीक्षा लेता है. और वहीँ दूसरी और असत्य का मार्ग काँटों से भरा हुआ है, जिस पर चलकर हमें अपना मान सम्मान और शौर्य खोना पड़ता है. इसी प्रकार सत्य रुपी सरोवर में उज्जवल पुष्प हमेशा ही पुलकित होते रहते हैं, क्योंकि उन्हें सत्संग की खाद और जल मिलता रहता है. लेकिन असत्य के तालाब में हमेशा मगरमच्छ रुपी बैर ही रहा करता है, जिस प्रकार सर्प के मुख में विष."शुभ" सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १६/०४/२०११
कि ख़त्म भ्रष्टाचार हो........!
पुकार हो, प्रहार हो,
जन-शक्ति एकाकार हो,
दुत्कार हो, ललकार हो,
एक युद्ध अबकी बार हो !!
१. खोल दो ये खिड़कियाँ,
तोड़ तो ये चुप्पियाँ,
पोछ दो ये सिसकियाँ,
कि उठ खड़े हज़ार हो ! कि उठ खड़े हज़ार हो !
२. प्रचंड एक नाद हो,
एक ही आवाज़ हो,
कल नहीं ये आज हो,
शपथ ये अबकी बार हो ! शपथ ये अबकी बार हो !
३. अब देश अपना मान लो,
सीना अपना तान लो,
तुम छीन अपना मान लो,
कि ख़त्म भ्रष्टाचार हो ! कि ख़त्म भ्रष्टाचार हो !
पुकार हो, प्रहार हो,
जन-शक्ति एकाकार हो,
दुत्कार हो, ललकार हो,
एक युद्ध अबकी बार हो !!
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०७/०४/२०११