Monday, June 27, 2011

For Ms. Deepti Pant, (Dhoondhte Dhoondhte Khuda Mil Gaya) - Reply

कैसा दिखता है,
क्या किसी पत्थर सा,
या किसी पेड़ सा,
या शायद टंगा होगा किसी कागज़ सा,
क्या उसके घर पर,
पांच वक़्त की अज़ान थी,
या फिर घंटियों की आवाज़ से,
पहाड़ों की चोटियाँ गुंजायमान थी,
कैसा लगा उसका चेहरा,
क्या किसी अबोध सा था,
या फिर चेहरे से उसके,
मानवता का बोध सा था....
उसकी रसोई देखी ?,
क्या वहां छप्पन भोग थे,
ये फिर थी सिर्फ दाल-रोटी,
क्या वो गरीब था, असहाय था,
या फिर चेहरे से उसके टपकती,
अमीरी का दर्प सुखाय था,
क्या वो सचमुच भगवान् था....
या रखा तुमने कोई आइना सरे बाज़ार था....
किंचित......
SURYADEEP ANKIT TRIPATHI - 27/06/2011

Monday, June 20, 2011

FOR MS. SUNITA BHASKAR..... DARD... (CANCER)

सचमुच... बहुत ही..दर्द सहते हैं.... जिन्हें ये बीमारी...लग जाती है...उनका हर पल हर लम्हा... कई पलों में, कई लम्हों में बदल जाता है... उनकी मुस्कराहट में भी दर्द का इल्म होता है, और कई बार वो हँसना चाहते हैं, लेकिन कमबख्त आँखों का पानी बहकर, उनकी मुस्कराहट को, उनकी हंसी को दर्द में तब्दील कर देती है....

रही तेरी नज़र सलामत, तो नज़र आऊँगा मैं भी,
गया जो घर से गुजर तू, तो गुज़र जाऊँगा मैं भी !!
जिन्दगी जिन्दा है दर्दों की दवा कर-कर के,
अब तो लगता है, एक दर्द से मर जाऊँगा मैं भी !!
कई नश्तर मेरे सीने में दफ़न है अब तक,
आज का जख्म भी मिल जाए, तो घर जाऊँगा मैं भी !!
मेरे मालिक, तू रहम करके, बुलाले मुझको,
जिस्म पर दाग ये लेकर के, किधर जाऊँगा मैं भी !! 



DARD... BY SURYADEEP ANKIT TRIPATHI - 20/06/2011