Monday, September 26, 2011

For Mr. Pratibimb ji - Yojna aayog ne banaya gareeb aur gareebi ka mazaak


प्रतिबिम्ब जी...
बहुत ही सार्थक व्यंग्य कहूँगा..आपकी इस रचना को...
इस सरकार ने अपने हाथों से अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार कर...और समय समय पर अपनी बेअक्ली का सबूत देकर अपने आपको एक मसखरा ही साबित किया है...
हम तो ख्वामख्वाह ही लालू को कोसते रहे.... इस सरकार में तो एक एक बढकर एक लालू भरे पड़े हैं...अब कल की ही बात लेलो...केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट को सिखा रही है कि आपकी मर्यादा या हद कहाँ तक है... बोल रही है...आप चिदंबरम पर जांच के लिए आदेश पारित नहीं कर सकते.... हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसका जवाब बहुत अच्छा दिया और...अब सीबीआई जांच के लिए तैयार हो गई है...खैर...
यहाँ बात चल रही है...उस मजाक की जो योजना आयोग ने..अभी २ दिन पहले...दिल्ली के रंगमंच से किया... कुछ पल के लिए तो सच कहें दिल को बहुत अच्छा लगा....वाह ३२ रूपये रोज़ में मेरा काम हो जायेगा... इसी ख़ुशी में मिठाई भी बांटने के लिए तैयार हो गया.... हलवाई की दुकान पर गया तो पता चला कि मिठाई का भाव कम से कम २५० रूपये प्रति किलो है... सर जी...हवा निकल गई...घर वापस आकर बैठा रहा और सोचता रहा...यार...३२ रूपये रोज़ में कैसे बात बनेगी... मैं तो अपनी ख़ुशी मैं किसी को शामिल नहीं कर पाऊँगा.... यही सोच रहा था...कि घर के बाहर से आवाज़ आई.... देखा तो इस्त्री करने वाला लड़का था....बोला साहब कपडे ले लो, इस्त्री कर दिया है.. मैंने कपडे लिए...और पुछा कितने पैसे बोला साहब १० कपडे के हिसाब से... २० रूपये.... मैंने दे दिए....फिर मैं वापस कमरे में आया...फिर हिसाब लगाया....यार ३२ रूपये में तो बात नहीं बनेगी.... इसी उधेड़बुन में पता ही नहीं चला कब ऑफिस जाने का वक़्त हो गया... अपनी मोटर साईकिल निकली, पेट्रोल चेक किया तो देखा...कि पेट्रोल दिख ही नहीं रहा है....बड़ी मुश्किल से धेकेल कर...पेट्रोल पम्प तक गया... पेट्रोल डालने वाला मुझको देख कर मुस्कुरा रहा था... नज़दीक आकर कहा.....साहब मैंने ३ दिन पहले ही कहा था...कम से कम १०० रूपये का पेट्रोल तो भरवा लेते...अब देखो...हो गए न परेशान.... मैंने मन ही मन सोचा... ३२ रूपये में बात नहीं बनेगी...खैर जेब से ढूढ़ कर उसे ५० रूपये दिए और कहा....ले इतने का डाल दे...क्या पता कल सरकार को अक्ल आजाये और पेट्रोल सस्ता हो जाये... फिर भरवा लूँगा..उसने बुरा सा मुहं बनाया और...पेट्रोल डाल दिया....
ऑफिस पहुंचा ही था...कि चपरासी मेरी सीट पर पहुंचा बोला "साहब मिठाई खाइए" मैंने पुछा... भाई किस ख़ुशी में मिठाई खिला रहे हो?" बोला... क्या साहब आप भी.. न्यूज़ नहीं देखते क्या... कल ही तो कहाँ है...वो मोंटेक सिंह जी ने... हम अमीर हो गए हैं.... मैंने चौक कर पुछा...भाई कैसे ? बोला... मेरी तनख्वाह ८० रुपया रोज़ है..यानि में रोज़ ८० रुपया रोज़ कमाता हूँ...और जो ३२ रूपये से ज्यादा कमाएगा वो अमीर होगा.. इसलिए हो गया न में अमीर" कहकर वो चल दिया...
वो खुश था..लेकिन उसके भीतर का दर्द मैं पढ़ सकता था...और मुझे उससे ज्यादा उसके परिवार वालों की फिक्र थी...वो नासमझ ये नहीं समझ सका कि उसकी इस ८० रूपये रोज़ वाली तनख्वाह के पीछे कितने लोग पल रहे हैं...उसके घर में माँ बाप, बीबी, १ बच्चे के अलावा एक छोटी बहन भी थी... मैंने गणित लगाया तो फिर सोचा....भाई...अब तो हद हो गई.... ३२ रूपये में बात बिलकुल नहीं बनेगी...
तो प्रति जी...बात कैसे बनेगी...कैसे पूरे होंगे मेरे सपने... कैसे में अपनी खुशियों में आपको शामिल कर पाऊँगा....कैसे....मेरे घर को बिजली रोशन करेगी....कैसे मुझे पीने को पानी मिलेगा.....कैसे...मैं अपने बच्चों को ३२ रूपये रोज़ मैं खाना खिला पाउँगा.....प्रति जी...३२ रूपये रोज़ में मैं कैसे जी पाउँगा....? अब तो यही सोच सोच कर टेंसन हो रही है... क्या मेरी मैयत का सामान भी...३२ रूपये में आ जायेगा...?
23 September at 09:46 AM

For Mr. Deepak Aroroa - 27/09/2011

पूर्णिमा जी...
बाकी तो सब अच्छा लिखा लेकिन.... ये क्या लिख डाला "ये दुनियां मर्दों की है सिर्फ मर्दों की"
मैंने वास्तविक हालातों को सामने रखा और माना....माना की बराबरी नहीं है... पुरुषों का आधिपत्य स्त्रीत्व पर भारी पड़ता है...पर उसका कारण है..एक सोच जो सदियों से चली आ रही है.. और सोच में परिवर्तन किया जा सकता है...इसलिए अपने आपको कमजोर मानना एक भूल है..और उस सोच को बढावा देना है.. जो चलती आ रही है... पूर्णिमा जी...आपने खुद कहा है...की नारी एक एक रूप काली,  दुर्गा और चंडिका भी है...और आप खुद ही नारी को कमजोर कह रही हैं...
कहाँ से हुआ जन्म इन रूपों का.... किसने दिया जन्म... काली को, दुर्गा को और चंडिका को.. या तो वो एक माँ (स्त्री) होगी...या फिर एक सोच दौनों में से कुछ भी हो सकती है... इसलिए अपने आपको कमजोर मान लेना...और ये सोचकर बैठ जाना कि ये समाज पुरुषों का है...हम नारियां कुछ भी नहीं कर सकती...ये धारणा गलत है... यह धारणा उस रूढ़िवादी सोच को बल ही देगी..कमजोर नहीं करेगी....इसलिए... उठो और पुरुषों के बराबर खड़े हो जाओ...और ये मत सोचो कि हम उनके बराबर नहीं हैं.. और सोच के लिए....बराबर, छोटा या बड़ा होना जरूरी नहीं.... बस हौसला, जूनून और एक सार्थक सोच की जरूरत होती है.... धन्यवाद... "शुभ"

Thursday, September 8, 2011

कि ख़त्म भ्रष्टाचार हो........ 07/04/2011