रचित - सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी
तीन पत्ती संकलन
विविध क्षणिकाएं, पद और लेख
1. Mamta Joshii -
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी तेरी
आँखों से छलकती है जो,
मय वो मयस्सर कब होगी...
खाली पैमाना लिए बैठे हैं..
दर पे तेरे कब से ओ साकी....! :) गुस्ताखी माफ़
मय वो मयस्सर कब होगी...
खाली पैमाना लिए बैठे हैं..
दर पे तेरे कब से ओ साकी....! :) गुस्ताखी माफ़
2. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल -
जब श्रीराम लखन और सीता जी, रावन संहार करके
अयोध्या लौटते हैं तो..
मुदित मोहित, सर्व जन लख,
सिय-राम लखन पधारते,
दीप प्रज्जल रहत घर-घर,
प्रभु गर्व पर्व निहारते !!! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २३/११/२०११
मुदित मोहित, सर्व जन लख,
सिय-राम लखन पधारते,
दीप प्रज्जल रहत घर-घर,
प्रभु गर्व पर्व निहारते !!! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २३/११/२०११
3. राजेन्द्र सिंह
कुँवर 'फरियादी'
प्रथम गुरु सनमान माँ,
दूजो है परिवार !
तीजो दे मति, सत सदा,
शिक्षक पालनहार !! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २४/११/२०११
दूजो है परिवार !
तीजो दे मति, सत सदा,
शिक्षक पालनहार !! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २४/११/२०११
4. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
तेजोमय मुख, उल्लासित,
दया-धर्म प्रवृति, है शोभित,
श्रीराम लखन लख द्वार खड़े,
सबरी है अचंभित, सम्मोहित !! {सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी} 28/11/2011
दया-धर्म प्रवृति, है शोभित,
श्रीराम लखन लख द्वार खड़े,
सबरी है अचंभित, सम्मोहित !! {सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी} 28/11/2011
5. कल्पना बहुगुणा
जल-जल दीपक,
तू जल निश्छल,,
कर तम ओझल,
मन हो उज्जवल,,
ज्यों सूर्य धवल,
ज्यों जल निर्मल...
जल जल दीपक, तू जल निश्छल ...... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २८/११/२०११
तू जल निश्छल,,
कर तम ओझल,
मन हो उज्जवल,,
ज्यों सूर्य धवल,
ज्यों जल निर्मल...
जल जल दीपक, तू जल निश्छल ...... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २८/११/२०११
6. Purnima Singh
बदला-बदला सा समां......देखोsss ,
नीला-नीला ये आसमां ....देखोsss,
धानों की धनकती पत्तियाँ,
पेड़ों की ठुमकती टहनियाँ,
बागों में टहलती तितलियाँ,
आँखों से चमकती बिजलियाँ... देखोsss
मेरे देश की फिजाओं की रंगत..... देखोsss
सूर्यदीप - २८/११/२०११
नीला-नीला ये आसमां ....देखोsss,
धानों की धनकती पत्तियाँ,
पेड़ों की ठुमकती टहनियाँ,
बागों में टहलती तितलियाँ,
आँखों से चमकती बिजलियाँ... देखोsss
मेरे देश की फिजाओं की रंगत..... देखोsss
सूर्यदीप - २८/११/२०११
7. सूर्यदीप अंकित
त्रिपाठी
मित्रो, आप सभी के सुन्दर
शब्दों की माला से अभिभूत हुआ...आप सभी का धन्यवाद.. :)
घट-घट काहे भटके रे घट,
घट भीतर घर ना पहचाने !
आतम रूप अनंत अनंदित,
प्रभु मारग सो ही जाने !!
हे मन, तू इधर-उधर सांसारिक भ्रमण क्यों कर रहा है, तेरे शरीर रूपी घर के भीतर क्यों नहीं झांकता, वहाँ तुझे आत्मा रूपी आत्मसुख मिलेगा, जिसको पाने का सुख अनंत है और आनंद से परिपूर्ण है, इस आनंद इस सुख को पाने के पश्चात प्रभु को पा लेना कोई बड़ी बात नहीं.
घट-घट काहे भटके रे घट,
घट भीतर घर ना पहचाने !
आतम रूप अनंत अनंदित,
प्रभु मारग सो ही जाने !!
हे मन, तू इधर-उधर सांसारिक भ्रमण क्यों कर रहा है, तेरे शरीर रूपी घर के भीतर क्यों नहीं झांकता, वहाँ तुझे आत्मा रूपी आत्मसुख मिलेगा, जिसको पाने का सुख अनंत है और आनंद से परिपूर्ण है, इस आनंद इस सुख को पाने के पश्चात प्रभु को पा लेना कोई बड़ी बात नहीं.
8. रघु स्वामी
जब हम को तुम और तुम को हम देखा करते
हैं..
कोई और नज़र न आये हमें, हम यूँ खो जाया करते हैं....
कोई और नज़र न आये हमें, हम यूँ खो जाया करते हैं....
9. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
तज बसनहूँ, बिनु बासना, मन करि गुरुजन
ध्यान,
नरहूँ नर वो श्रेष्ठ है, सदगुरु पावत ज्ञान !!
अर्थात - जो बुरे व्यसनों का त्याग करते हुए, बिना कामना या स्वार्थ के अपने गुरु जन का ध्यान करता है. सदगुरु उसी नर को नरों में श्रेष्ठ मानते हैं और वही सदगुरु के ज्ञान को पाने के लायक है.. 'शुभ' - सूर्यदीप - ३०/११/२०११
नरहूँ नर वो श्रेष्ठ है, सदगुरु पावत ज्ञान !!
अर्थात - जो बुरे व्यसनों का त्याग करते हुए, बिना कामना या स्वार्थ के अपने गुरु जन का ध्यान करता है. सदगुरु उसी नर को नरों में श्रेष्ठ मानते हैं और वही सदगुरु के ज्ञान को पाने के लायक है.. 'शुभ' - सूर्यदीप - ३०/११/२०११
10. विशाल अग्रवाल
दर्द चेहरे का छिपाएं कैसे,
ये कसक उम्र की कमाई है,
दिल ने दागों का हो बयां कैसे,
दिल ने दिलबर से चोट खाई है....
रूह तो नाम कर ही दी उसके,
बात अब जिस्म की भी आई है.. !!! सूर्यदीप
ये कसक उम्र की कमाई है,
दिल ने दागों का हो बयां कैसे,
दिल ने दिलबर से चोट खाई है....
रूह तो नाम कर ही दी उसके,
बात अब जिस्म की भी आई है.. !!! सूर्यदीप
12. Madhavi Joshi
देवी रूप सम जान ले कन्या, नारी घर की नाक !
जिस घर में न हो आदर इनका, हर कार्य हो शर्मनाक !!
जिस घर में न हो आदर इनका, हर कार्य हो शर्मनाक !!
13. डॉ.सुनीता कविता
सृष्टि और नारी की समानता का एक
पहलू...... दुसरे की बात अभी रहने दो...
सृष्टि नारी समान है,
वो जननी है, वो पोषक है,
वो पालक है, वो रोचक है,
गर हम हों मर्यादित ! सूर्यदीप - २/१२/२०११
सृष्टि नारी समान है,
वो जननी है, वो पोषक है,
वो पालक है, वो रोचक है,
गर हम हों मर्यादित ! सूर्यदीप - २/१२/२०११
14. Shastri Rc
नव निधि, दस गुन ते सदा,
जेहि भूषण कर्म, सुज्ञान !
बिपदा पल संग छाडिहें,
हरी उपासना, नित ध्यान !!!
अर्थात - जिस व्यक्ति के आभूषण ही सुकर्म और सुज्ञान होते हैं, उसी के पास नव निधियों का सुख और सदगुणों का साथ होता है.
और नित्य ध्यान और हरी की उपासना करने से कोई भी विपत्ति पल भर में ही आपका साथ छोड़ देती है. "शुभ"
जेहि भूषण कर्म, सुज्ञान !
बिपदा पल संग छाडिहें,
हरी उपासना, नित ध्यान !!!
अर्थात - जिस व्यक्ति के आभूषण ही सुकर्म और सुज्ञान होते हैं, उसी के पास नव निधियों का सुख और सदगुणों का साथ होता है.
और नित्य ध्यान और हरी की उपासना करने से कोई भी विपत्ति पल भर में ही आपका साथ छोड़ देती है. "शुभ"
15. Anoop Basliyal
गंगा कलि-मल हारिणी, जमुना पालनहार !
सर-सर जुड़ भई सरस्वती, देहि अन्न अपार !! सूर्यदीप - ०३/१२/२०११
सर-सर जुड़ भई सरस्वती, देहि अन्न अपार !! सूर्यदीप - ०३/१२/२०११
16. Pradeep Kumar Naithani
"लिपिक नामक जीव हमारी नौकरशाही का वह सूरज है, जिसके चारों तरफ
एक आम आदमी अपनी फ़ाइल लेकर चक्कर लगता रहता है."
17. अशोक राठी
सत मानस एक रूप हरी, रज एक मूल विधाय,
तम एक खंभ महेश सम, सृष्टी देहि रचाय !!
अर्थात - पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सत को एक बीज की संज्ञा दी गई है, बीज जहाँ से उत्पत्ति होती है, और उसे हरी अथवा विष्णु के सामान माना गया है.
रज को एक जड़ माना गया है, जो बीज से उत्पन्न हुई है और ब्रह्मा उनका नाम है, इसी प्रकार जड़ से उत्पत्ति हुई है एक स्तम्भ की, एक तने की, जो शिव शंकर का पर्याय है, इन तीनों गुणों से मिलकर सृष्टी का निर्माण हुआ करता है. कई जगह इन तीनों शब्दों का उल्लेख वानस्पतिक संधर्भ में भी लिया गया है. {सूर्यदीप}
तम एक खंभ महेश सम, सृष्टी देहि रचाय !!
अर्थात - पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सत को एक बीज की संज्ञा दी गई है, बीज जहाँ से उत्पत्ति होती है, और उसे हरी अथवा विष्णु के सामान माना गया है.
रज को एक जड़ माना गया है, जो बीज से उत्पन्न हुई है और ब्रह्मा उनका नाम है, इसी प्रकार जड़ से उत्पत्ति हुई है एक स्तम्भ की, एक तने की, जो शिव शंकर का पर्याय है, इन तीनों गुणों से मिलकर सृष्टी का निर्माण हुआ करता है. कई जगह इन तीनों शब्दों का उल्लेख वानस्पतिक संधर्भ में भी लिया गया है. {सूर्यदीप}
18. Kusum Sharma
टूटते खाब, सिसकते अरमा,
हर किसी आँख में नमी क्यूँ है !
दर्द का रिश्ता यहाँ, जुड़ते क्यूँ लगे सदियाँ,
दिल के कौने में ये कमी क्यूँ है !
क्यूँ नहीं भूलते कि अब हम हैं नहीं,
उनके चेहरे पे ये ग़मी क्यूँ है ! {सूर्यदीप} 9/12/2011
हर किसी आँख में नमी क्यूँ है !
दर्द का रिश्ता यहाँ, जुड़ते क्यूँ लगे सदियाँ,
दिल के कौने में ये कमी क्यूँ है !
क्यूँ नहीं भूलते कि अब हम हैं नहीं,
उनके चेहरे पे ये ग़मी क्यूँ है ! {सूर्यदीप} 9/12/2011
19. Ranju Bhatia
जिंदगी कुछ उस किताब की तरह है... जिसके
कुछ पन्नों में दर्द बिखरा होता है...कुछ पन्नों में ख़ुशी चहकती है....और कुछ
पन्ने पहेलीनुमा कविताओं जैसे होते हैं....जो हर कोई समझ नहीं पाता....और यही
वक़्त होता है..जब वो जिंदगी से हार जाता है....और उसकी ये किताब उस आखरी कोरे पेज
की तरह ही सफ़ेद हो जाती है..और फिर...फिर... कहानी ख़त्म.....
माधवी) जी, बहुत सही कहा
आपने...
कुछ लफ्ज़ जो, होंठों के ठुकराए, आँखों से गिराए होते हैं...
नहीं मिलता कहीं दामन, वो मेरे गीतों में समाये होते हैं.... सूर्यदीप
कुछ लफ्ज़ जो, होंठों के ठुकराए, आँखों से गिराए होते हैं...
नहीं मिलता कहीं दामन, वो मेरे गीतों में समाये होते हैं.... सूर्यदीप
20. सूर्यदीप अंकित
त्रिपाठी
बाद मरने के मेरे, मुझको वो ख़ाक कर
देंगे,
बहते दरिया में मेरी राख़ बहा, वो देंगे !!
बहते-बहते मैं कहीं दूर चला जाऊँगा,
याद रखना कि कभी लौट के न आऊँगा !!.......
बहते दरिया में मेरी राख़ बहा, वो देंगे !!
बहते-बहते मैं कहीं दूर चला जाऊँगा,
याद रखना कि कभी लौट के न आऊँगा !!.......
दर्द मेरा जो बहे, आँख से उसके या
रब,
देखना तेरी भी कुदरत को बदल हम देंगे....!!
देखना तेरी भी कुदरत को बदल हम देंगे....!!
मेरी जाँ, जान अगर जाए तो
ग़म न करना,
दिल को देना न सजा आँख, नहीं नम करना,
मैं रहूँ या न रहूँ, रूह तेरे साथ ही होगी,
अपनी यादों को इस कदर दिल में बसर कर देंगे !!
दिल को देना न सजा आँख, नहीं नम करना,
मैं रहूँ या न रहूँ, रूह तेरे साथ ही होगी,
अपनी यादों को इस कदर दिल में बसर कर देंगे !!
21. आनंद कुनियाल
ख़ुद खुदा भी हुआ बेखुद, देख बुत तेरा,
बेखुदी पे ख़ुद की, हुआ ताज्जुब और हँसी आई !
बख्श दी जान, जो तेरे बुत को, तो हुआ ख़ुद बेजाँ,
तूने जो छुआ तो खुदा में यकीनन फिर से जान आई !! {सूर्यदीप १३/१२/२०११)
बेखुदी पे ख़ुद की, हुआ ताज्जुब और हँसी आई !
बख्श दी जान, जो तेरे बुत को, तो हुआ ख़ुद बेजाँ,
तूने जो छुआ तो खुदा में यकीनन फिर से जान आई !! {सूर्यदीप १३/१२/२०११)
22. अस्तित्व एक खोज
दिल के तू पास, घर तेरा दूर,
हो मुलाक़ात कैसे ! :)
हो मुलाक़ात कैसे ! :)
23. राजेन्द्र सिंह
कुँवर 'फरियादी'
मन की तृष्णा, इक मरू-भूमि
तेरे काले बादल आस मेरी,
अधरों का रस अब, कुछ तो बरस,
वर्षा से बुझे न प्यास मेरी !! {सूर्यदीप १३/१२/२०११)
तेरे काले बादल आस मेरी,
अधरों का रस अब, कुछ तो बरस,
वर्षा से बुझे न प्यास मेरी !! {सूर्यदीप १३/१२/२०११)
24. Purnima Singh
"जब कोई दोस्त किसी को दोस्ती में धोखा देता है, तो दोस्ती जैसे
शब्द बहुत मामूली से लगने लगते हैं...इन पर से विश्वास उठ सा जाता है...."
25. राजेन्द्र सिंह
कुँवर 'फरियादी'
"कल रात तुम्हें नहीं देखा....छत पर...
वो चाँद बार-बार मुँह चिड़ा रहा था...और अँधेरा धीरे-धीरे मुझे अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा था....
कहाँ हो तुम.... एक बार तो आकर चाँद को जवाब दो...रोशन करो मेरा जहाँ......पर....पर...तुम नहीं आई,...शायद तुम भी.... "
वो चाँद बार-बार मुँह चिड़ा रहा था...और अँधेरा धीरे-धीरे मुझे अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा था....
कहाँ हो तुम.... एक बार तो आकर चाँद को जवाब दो...रोशन करो मेरा जहाँ......पर....पर...तुम नहीं आई,...शायद तुम भी.... "
26. Sunita Sharma
"ब्रह्म रचे ब्रह्माण्ड को, कर दिनकर-निशि एक,
क्षण में सृष्टी रचाई दे, कर कवि कल्पना एक !!"
अर्थात - "जिस सृष्टी को रचने के लिए ब्रह्मा अपने हाथों से अनवरत प्रयास रत रहते हैं..उसकी रचना एक कवि, मात्र कल्पना से ही कर देता है".
सूर्यदीप - १५/१२/२०११
क्षण में सृष्टी रचाई दे, कर कवि कल्पना एक !!"
अर्थात - "जिस सृष्टी को रचने के लिए ब्रह्मा अपने हाथों से अनवरत प्रयास रत रहते हैं..उसकी रचना एक कवि, मात्र कल्पना से ही कर देता है".
सूर्यदीप - १५/१२/२०११
27. Baba Jays
"
हाँ, तुम्हारे प्यार की गहराई को मैं नादान...समझ नहीं पाया....और
जब उस दिन तुम मुझसे रूठी...और मुझसे जुदा होने लगी....तो मुझे अहसास हुआ कि...कि
तुम्हारे बिना मैं कुछ भी नहीं.....लेकिन तुमने शायद मुझे अब तक माफ़ नहीं
किया...और न ही मैं तुम्हें भुला ही पाया....क्योंकि...अब भी इन तन्हाइयों में..अब
भी तुम्हारी यादों की परछाइयाँ मेरे आस पास होती है..."
28. Baba Jays
जन वेदना..बनी मूक श्राप
उत्साह कोई लाकर दे दे
कविता के आखर धार नहीं..
हथियार अब हाथ कोई दे दे..!! ......
मेरी नवीन रचना....का एक अंश.... {सूर्यदीप}
उत्साह कोई लाकर दे दे
कविता के आखर धार नहीं..
हथियार अब हाथ कोई दे दे..!! ......
मेरी नवीन रचना....का एक अंश.... {सूर्यदीप}
29. Kusum Sharma
गुलो-गुलजार हुआ दिल, उनका दीदार हुआ..
आज किस्मत पे खुदकी, मुझको, ऐतबार हुआ.....
हम परेशां थे कि, भुला किये है वो हमको ...
बाखुदा आईने से फिर, मुझको प्यार हुआ.... {सूर्यदीप}
आज किस्मत पे खुदकी, मुझको, ऐतबार हुआ.....
हम परेशां थे कि, भुला किये है वो हमको ...
बाखुदा आईने से फिर, मुझको प्यार हुआ.... {सूर्यदीप}
30. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
दिल के जख्मों को क्यूँ कुरेदे यहाँ,
बीते पल की यूँ कोई बात न कर....
मेरी खामोश निगाहों का रख कुछ तो भरम,
जलती आखों से न देख, कोई सवाल न कर.... (सूर्यदीप) १९/१२/२०११)
बीते पल की यूँ कोई बात न कर....
मेरी खामोश निगाहों का रख कुछ तो भरम,
जलती आखों से न देख, कोई सवाल न कर.... (सूर्यदीप) १९/१२/२०११)
31. Sunita Sharma
कोहरे के बादल पर अंकित,
धुंध सी कोई कल्पना तेरी...
कभी छंट जाती, कभी छा जाती,
यही यादों का अंदाज़ मेरी....
"तेरी कल्पना...तेरी.. तस्वीर...जैसे कि कोहरे के बादल में लिपटी हुई....कभी दिखाई देती...कभी खो जाती....जैसे मेरी यादें......."
धुंध सी कोई कल्पना तेरी...
कभी छंट जाती, कभी छा जाती,
यही यादों का अंदाज़ मेरी....
"तेरी कल्पना...तेरी.. तस्वीर...जैसे कि कोहरे के बादल में लिपटी हुई....कभी दिखाई देती...कभी खो जाती....जैसे मेरी यादें......."
32. Madhavi Joshi
"पलकों की
चिलमनों से...झाँकती तुम्हारी आँखें.....शायद मुझे ऐसे ही किसी नज़ारे की आस
थी...और शायद तुम्हें भी...
तभी तो दो मोती....लुढ़ककर..तुम्हारे गालों तक चले आये थे...शायद..आँसू भी कब से छलकने को तरस रहे थे.....किसी ने सच ही कहा है..बरसों बाद जब कोई अपना आपसे मिलता है... तो आँखे नम हो जाया करती हैं..."
तभी तो दो मोती....लुढ़ककर..तुम्हारे गालों तक चले आये थे...शायद..आँसू भी कब से छलकने को तरस रहे थे.....किसी ने सच ही कहा है..बरसों बाद जब कोई अपना आपसे मिलता है... तो आँखे नम हो जाया करती हैं..."
33. सूर्यदीप अंकित
त्रिपाठी
गुरु सत संगत ज्ञान समाये,
दोष न दर्प न मान रिझाये !!
धन लोलुपता निकट ना आये,
जो साईं मन अछत बिठाये !!
अर्थात - सतगुरु की संगत का ज्ञान जिसे मिल गया हो, उसे ना तो कोई अवगुण, ना द्वेष और ना ही झूठा अभिमान अपने वश में कर सकते हैं... और जो व्यक्ति अपने मन में साईं के लिए अटूट विश्वास रुपी धन रखता है... उसके लिए कुबेर का अथाह धन भी तुच्छ है (सूर्यदीप)- २१/१२/२०११
दोष न दर्प न मान रिझाये !!
धन लोलुपता निकट ना आये,
जो साईं मन अछत बिठाये !!
अर्थात - सतगुरु की संगत का ज्ञान जिसे मिल गया हो, उसे ना तो कोई अवगुण, ना द्वेष और ना ही झूठा अभिमान अपने वश में कर सकते हैं... और जो व्यक्ति अपने मन में साईं के लिए अटूट विश्वास रुपी धन रखता है... उसके लिए कुबेर का अथाह धन भी तुच्छ है (सूर्यदीप)- २१/१२/२०११
34. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
"तर्क
सुशब्द सार्थक सदा,
वितर्क विलोम विधाय !
जेहि अक्षर नहीं घर-घट,
सोही कुतर्क कहलाय !! "
अर्थात - "किसी सार्वभौम विषय पर अपने शब्दों को समुचित और सार्थक रूप से रखने की विधि तर्क कहलाती है, वहीँ यदि उसी विषय पर आलोचनात्मक या विपक्ष टिपण्णी की जाती है तो वो वितर्क कहलाता है. और जो शब्द विषय से भटके हुए होते हैं, जिनका उस विषय से कोई सरोकार नहीं होता, अथवा जिन शब्दों का न घर होता है न संसार...वो कुतर्क कहलाते हैं.."
"शुभ" सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी २२/१२/२०११
वितर्क विलोम विधाय !
जेहि अक्षर नहीं घर-घट,
सोही कुतर्क कहलाय !! "
अर्थात - "किसी सार्वभौम विषय पर अपने शब्दों को समुचित और सार्थक रूप से रखने की विधि तर्क कहलाती है, वहीँ यदि उसी विषय पर आलोचनात्मक या विपक्ष टिपण्णी की जाती है तो वो वितर्क कहलाता है. और जो शब्द विषय से भटके हुए होते हैं, जिनका उस विषय से कोई सरोकार नहीं होता, अथवा जिन शब्दों का न घर होता है न संसार...वो कुतर्क कहलाते हैं.."
"शुभ" सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी २२/१२/२०११
35. Sunita Sharma
"इक तारा फिर टूटा देखो...
देखो फिर इक सपना टूटा...
अपनों को दे अपनी यादें...
फिर अपनों से इक अपना रूठा... {सूर्यदीप - २३/१२/२०११) December 23, 2011 at 10:31am · · 6
देखो फिर इक सपना टूटा...
अपनों को दे अपनी यादें...
फिर अपनों से इक अपना रूठा... {सूर्यदीप - २३/१२/२०११) December 23, 2011 at 10:31am · · 6
36. Sandeep Lakhera Nainvaya
"मुझसे मिलने का तेरा कोई इरादा तो न था..
कोशिशें मेरी थीं तनहा, तेरा वादा तो न था... "
कोशिशें मेरी थीं तनहा, तेरा वादा तो न था... "
यूँ ही खाती रही कसमें वफ़ा की तुम मुझसे..
प्यार पर ऐतबार तुझको, जियादा तो न था.... ...
प्यार पर ऐतबार तुझको, जियादा तो न था.... ...
37. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मन अर्पित, है तन ये समर्पित,
गुण-अवगुण, काया ये अर्जित,
दया-धरम के, भाव ये अरचित,
धन निर्मित, ये भुवन समर्पित,
सब अर्पित है, हे नाथ समर्पित,
तेरे ही श्री चरणों में...... "सूर्यदीप"
गुण-अवगुण, काया ये अर्जित,
दया-धरम के, भाव ये अरचित,
धन निर्मित, ये भुवन समर्पित,
सब अर्पित है, हे नाथ समर्पित,
तेरे ही श्री चरणों में...... "सूर्यदीप"
38. Baba Jays
"अनकही सबने कही,
मन की कही, कही न गई...
बात समझी न गई,
फिर भी समझाई गई...
भावना दिल की जो सुनाई मैंने...
छलकी पलकें कई, पर दिखाई न गई"...... "सूर्यदीप" २४/१२/२०११
मन की कही, कही न गई...
बात समझी न गई,
फिर भी समझाई गई...
भावना दिल की जो सुनाई मैंने...
छलकी पलकें कई, पर दिखाई न गई"...... "सूर्यदीप" २४/१२/२०११
39. Madhavi Joshi
क्यूँ वसुंधरा पुकारती,
गगन को क्यूँ निहारती...
खड़े है चुप पहाड़ क्यूँ....
क्यों ताकता है देव यूँ.....
क्यों जल का वर्ण नील है,
क्यूँ चंद्रमा अधीर है,
क्यूँ सूर्य सम प्रखर अगन
खग-वृन्द क्यूँ उड़े गगन,
क्यूँ फूल के इतने प्रकार,
क्यूँ मचल उठी बयार,
ये किस कवि का प्यार है...
ये कौन चित्रकार है..... [सूर्यदीप] -२४/१२/२०११
गगन को क्यूँ निहारती...
खड़े है चुप पहाड़ क्यूँ....
क्यों ताकता है देव यूँ.....
क्यों जल का वर्ण नील है,
क्यूँ चंद्रमा अधीर है,
क्यूँ सूर्य सम प्रखर अगन
खग-वृन्द क्यूँ उड़े गगन,
क्यूँ फूल के इतने प्रकार,
क्यूँ मचल उठी बयार,
ये किस कवि का प्यार है...
ये कौन चित्रकार है..... [सूर्यदीप] -२४/१२/२०११
40. Vipin Barthwal
औरकुट अब न भाए मुझे,
करूँ न अब ट्वीटर पे ट्वीट,
मित्रो आप भी मान लो,
है फेसबुक सबसे बढकर स्वीट !! {सूर्यदीप} २६/१२/२०११
करूँ न अब ट्वीटर पे ट्वीट,
मित्रो आप भी मान लो,
है फेसबुक सबसे बढकर स्वीट !! {सूर्यदीप} २६/१२/२०११
41. Kiran Arya
तस्सवुर तेरा, जुस्तजू तेरी,
तेरा ही ख्वाबो-ख्याल है...
चैन भी नींदें भी रुखसत,
ये आशिकी कमाल है....! सूर्यदीप
तेरा ही ख्वाबो-ख्याल है...
चैन भी नींदें भी रुखसत,
ये आशिकी कमाल है....! सूर्यदीप
42. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
अति आनंद, अनंत परमसुख,
जेहि पावत आशीष गुरु मुख !
शब्द अनुकरन जो मन लाई,
दुःख दारिद्र, जलद छन जाई !!
अर्थात - जो मनुष्य सदगुरु के सुमुख से शुभाशीष पा लेता है, उसके लिए यह कभी न ख़त्म होने वाला आनंद और परमसुख है. और जो उनके शब्दों को शिक्षा को अपने जीवन में उतार लेता है...उसके जीवन से दुःख-दारिद्र के बादल निश्चित रूप से छंट जाते हैं.. {सूर्यदीप}
जेहि पावत आशीष गुरु मुख !
शब्द अनुकरन जो मन लाई,
दुःख दारिद्र, जलद छन जाई !!
अर्थात - जो मनुष्य सदगुरु के सुमुख से शुभाशीष पा लेता है, उसके लिए यह कभी न ख़त्म होने वाला आनंद और परमसुख है. और जो उनके शब्दों को शिक्षा को अपने जीवन में उतार लेता है...उसके जीवन से दुःख-दारिद्र के बादल निश्चित रूप से छंट जाते हैं.. {सूर्यदीप}
43. Kusum Sharma
काहे रूठे मोसे मोरा श्याम रे,
करूँ का जतन अब बोल कन्हैया..(२)
किस बिधि बने मोरा काम रे..... काहे रूठे मोसे.......
जलभरी पनही टूटे अब या, रूठे सब संसार.....
मोरे लाला दोष न दूँगी चाहे, छूटे सखियाँ चार...
नहीं डाटूंगी फिरे चाहे ग्राम रे...... काहे रूठे मोसे....
{कान्हा-यशोदा संवाद - सूर्यदीप - २९/१२/२०११)
करूँ का जतन अब बोल कन्हैया..(२)
किस बिधि बने मोरा काम रे..... काहे रूठे मोसे.......
जलभरी पनही टूटे अब या, रूठे सब संसार.....
मोरे लाला दोष न दूँगी चाहे, छूटे सखियाँ चार...
नहीं डाटूंगी फिरे चाहे ग्राम रे...... काहे रूठे मोसे....
{कान्हा-यशोदा संवाद - सूर्यदीप - २९/१२/२०११)
44. Sunita Sharma
"ठीक है".....उसने शरारत भरी मुस्कराहट के
साथ अपने सतरंगी आँचल के किनारे को अपने श्वेत दन्त पंक्तियों के बीच दबाते हुए
कहा कहा - "तुम कहते हो तो...मैं मान लेती हूँ...कि तुम मुझसे प्रेम करते हो, लेकिन....लेकिन
मैं.. तो तुम्हें नहीं चाहती" कहकर वो धीमी
मुस्कराहट के साथ इठलाती नदी की अठखेलियों को निहारने लगी..और मैं...मैं उसे....
अचानक मेरी ओर तिरछी नज़र करती हुई वो बोल उठी... "ऐसे क्यूँ देख रहे हो"
मैं फिर भी कुछ न बोला..और यूँ ही मंद-मंद मुस्कुराते हुए उसे निहारता रहा.. उसने फिर मेरी ओर देखा...पर कुछ नहीं बोला....मुझे उसकी आँखों मैं उसका सच उभर कर मुझे दिखाई देने लगा था... उसके गालों की लाली और कंपकंपाते होंठ इस बात की गवाही दे रहे थे..कि वो भी मुझे उतना ही चाहती है..जितना कि मैं उसे...वो मुझसे अधिक देर तक नज़रें नहीं मिला पाई... और फिर से प्रकृति के उस मनोरम दृश्य को निहारने लगी.....शायद इन खामोशियों की भी अपनी आवाज़ होती है...जिसे केवल खामोश रह कर ही सुना जा सकता है....
अचानक मेरी ओर तिरछी नज़र करती हुई वो बोल उठी... "ऐसे क्यूँ देख रहे हो"
मैं फिर भी कुछ न बोला..और यूँ ही मंद-मंद मुस्कुराते हुए उसे निहारता रहा.. उसने फिर मेरी ओर देखा...पर कुछ नहीं बोला....मुझे उसकी आँखों मैं उसका सच उभर कर मुझे दिखाई देने लगा था... उसके गालों की लाली और कंपकंपाते होंठ इस बात की गवाही दे रहे थे..कि वो भी मुझे उतना ही चाहती है..जितना कि मैं उसे...वो मुझसे अधिक देर तक नज़रें नहीं मिला पाई... और फिर से प्रकृति के उस मनोरम दृश्य को निहारने लगी.....शायद इन खामोशियों की भी अपनी आवाज़ होती है...जिसे केवल खामोश रह कर ही सुना जा सकता है....
45. Baba Jays
"अभिव्यक्ति
वह दर्शन है जो व्यक्ति के आतंरिक भावों को उसके ही शब्दों द्वारा प्रदर्शित करता
है..और वह मौलिक होती हैं...
लेकिन कामना और आसक्ति उसकी कमजोरी होती है...और यह मौलिक होने के साथ-साथ परार्षित होती है..यह पैदा होती है..बढती है, पलती है....और एक दिन नष्ट हो जाती है...लेकिन अभिव्यक्ति कभी नष्ट नहीं हुआ करती.....
इसको आप ऐसे समझ सकते हैं...जैसे ये शरीर तो आपका है..साथ ही इसके गुण-अवगुण, इसका आकार-विकार, इसके कर्म-कर्तव्य भी आपके हैं...और यह नश्वर है...इसे एक दिन नष्ट होना ही है....लेकिन आत्मा....आत्मा आपकी नहीं है...अगर वो आपकी होती तो वह आपका शरीर कभी नहीं छोडती... उसपर केवल परमात्मा का अधिकार है...और वही इसके लिए नए वस्त्र या शरीर का निर्माण करता है...
"अहम् ब्रह्मा अस्मि" ये शब्द आपके नहीं हैं...ये आत्मा के हैं.. और एक शुद्ध आत्मा कामना और आसक्ति से दूर ही रहा करती है... यदि वह किसी कारण से इन आसक्तियों अथवा कामनाओं से दूर नहीं हो पाती तो वह ब्रह्म में एकाकार नहीं हो पाती और न ही नए शरीर को धारण कर पाती है...क्योंकि जब तक आत्मा आसक्त रहेगी वह भटकती ही रहेगी" "शुभ" सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ३०/१२/२०११
लेकिन कामना और आसक्ति उसकी कमजोरी होती है...और यह मौलिक होने के साथ-साथ परार्षित होती है..यह पैदा होती है..बढती है, पलती है....और एक दिन नष्ट हो जाती है...लेकिन अभिव्यक्ति कभी नष्ट नहीं हुआ करती.....
इसको आप ऐसे समझ सकते हैं...जैसे ये शरीर तो आपका है..साथ ही इसके गुण-अवगुण, इसका आकार-विकार, इसके कर्म-कर्तव्य भी आपके हैं...और यह नश्वर है...इसे एक दिन नष्ट होना ही है....लेकिन आत्मा....आत्मा आपकी नहीं है...अगर वो आपकी होती तो वह आपका शरीर कभी नहीं छोडती... उसपर केवल परमात्मा का अधिकार है...और वही इसके लिए नए वस्त्र या शरीर का निर्माण करता है...
"अहम् ब्रह्मा अस्मि" ये शब्द आपके नहीं हैं...ये आत्मा के हैं.. और एक शुद्ध आत्मा कामना और आसक्ति से दूर ही रहा करती है... यदि वह किसी कारण से इन आसक्तियों अथवा कामनाओं से दूर नहीं हो पाती तो वह ब्रह्म में एकाकार नहीं हो पाती और न ही नए शरीर को धारण कर पाती है...क्योंकि जब तक आत्मा आसक्त रहेगी वह भटकती ही रहेगी" "शुभ" सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ३०/१२/२०११
46. Kiran Arya
तस्सवुर तेरा, जुस्तजू तेरी,
तेरा ही ख्वाबो-ख्याल है...
चैन भी नींदें भी रुखसत,
ये आशिकी कमाल है....! सूर्यदीप
तेरा ही ख्वाबो-ख्याल है...
चैन भी नींदें भी रुखसत,
ये आशिकी कमाल है....! सूर्यदीप
47. Still Alive
लोग अनजाने यहाँ... रास्ते अनजाने
हैं....
जिंदगी एक सफ़र, हमसफ़र अनजाने हैं...
जिंदगी एक सफ़र, हमसफ़र अनजाने हैं...
48. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मानव आदिकाल से निरंतर अपना शारीरिक, बौद्धिक
और सांस्कृतिक विकास करता आया है..
उसने अपने पास उपलब्ध तात्कालिक संसाधनों का अधिकतम दोहन करके अपने जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन किया है और अनवरत अथक परिश्रम ही उसके चतुर्मुखी विकास और उसके जीवन में आये सुखद परिवर्तन का द्योतक है.
लेकिन आधुनिक मनुष्य में विकास की इस होड़ से, मानवता और संवेदनशीलता का ह्रास होता जा रहा है.. मनुष्य एकाधिकार और एकाकी विकास के लिए अपनी सीमा से ज्यादा मेहनत कर रहा है.. जिससे उसके सामाजिक जीवन और उसके मूल्यों की हानि होती जा रही है..
हम ये कह सकते हैं कि "आदिकाल से निरंतर विकास करते हुए मनुष्य ने अपने आपको आधुनिक विकास का प्रणेता बनाया, लेकिन अब धीरे-धीरे वह स्वयं ही अपने आपको समाज से अलग करता हुआ, पुन: आदिकाल की और कदम बड़ा रहा है जो कि मानवता के अस्तित्व के लिए घातक है " "शुभ" {सूर्यदीप - ०५/०१/२०१२}
उसने अपने पास उपलब्ध तात्कालिक संसाधनों का अधिकतम दोहन करके अपने जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन किया है और अनवरत अथक परिश्रम ही उसके चतुर्मुखी विकास और उसके जीवन में आये सुखद परिवर्तन का द्योतक है.
लेकिन आधुनिक मनुष्य में विकास की इस होड़ से, मानवता और संवेदनशीलता का ह्रास होता जा रहा है.. मनुष्य एकाधिकार और एकाकी विकास के लिए अपनी सीमा से ज्यादा मेहनत कर रहा है.. जिससे उसके सामाजिक जीवन और उसके मूल्यों की हानि होती जा रही है..
हम ये कह सकते हैं कि "आदिकाल से निरंतर विकास करते हुए मनुष्य ने अपने आपको आधुनिक विकास का प्रणेता बनाया, लेकिन अब धीरे-धीरे वह स्वयं ही अपने आपको समाज से अलग करता हुआ, पुन: आदिकाल की और कदम बड़ा रहा है जो कि मानवता के अस्तित्व के लिए घातक है " "शुभ" {सूर्यदीप - ०५/०१/२०१२}
January 5 at 9:48am · · 9
49. Ranjan Mishra
"किसी भी
राष्ट्र की प्रगति में बाधक तत्वों में जातिवाद और आरक्षण प्रमुख रूप से माने जा
सकते हैं.
दौनों नीतियां ही.. देश को आतंरिक रूप से विभाजित करने का कार्य करतीं हैं... और देश धीरे-धीरे गृह-युद्ध की आंच से सुलगता हुआ पतन की ओर बढ़ता चला जाता है"
दौनों नीतियां ही.. देश को आतंरिक रूप से विभाजित करने का कार्य करतीं हैं... और देश धीरे-धीरे गृह-युद्ध की आंच से सुलगता हुआ पतन की ओर बढ़ता चला जाता है"
50. Sunita Sharma
दिनकर फिर से लेकर आया...
ये सुप्रभात सुखकर !
हुआ तिमिर नाश, जगी जन की आस,
खिले कुसुम यूँ मुस्काकर !!
ये सुप्रभात सुखकर !
हुआ तिमिर नाश, जगी जन की आस,
खिले कुसुम यूँ मुस्काकर !!
ये सुप्रभात सुखकर !
मानव ने आलस छोड़ा, हलधर भी ले हल दौड़ा,
गाये-गीत पंछी यूँ चहककर !!
मानव ने आलस छोड़ा, हलधर भी ले हल दौड़ा,
गाये-गीत पंछी यूँ चहककर !!
ये सुप्रभात सुखकर !
हुई शंख-ध्वनी मंदिर में, आयत गूंजी मस्जिद में,
करे स्तुति वो गिरिजाघर !!
हुई शंख-ध्वनी मंदिर में, आयत गूंजी मस्जिद में,
करे स्तुति वो गिरिजाघर !!
ये सुप्रभात सुखकर !
करे ध्यान गुरुका गुरुद्वारा, गुरु ज्ञान बांटे जग में सारा,
बने हम महान पढ़-लिखकर !
करे ध्यान गुरुका गुरुद्वारा, गुरु ज्ञान बांटे जग में सारा,
बने हम महान पढ़-लिखकर !
ये सुप्रभात सुखकर !
दिनकर फिर से लेकर आया...ये सुप्रभात सुखकर !
०६/०१/२०१२ सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी
दिनकर फिर से लेकर आया...ये सुप्रभात सुखकर !
०६/०१/२०१२ सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी
51. Suman Ranjan
हे कामिनी,
वो देख सुशोभित यामिनी,
चन्द्र की प्रियकर चाँदनी !
है रत्नजडित तारों का गगन,
सुन्दर समीर की रागिनी !!
कहीं जल बरसाता इक जलधर,
कहीं खूब कड़कती दामिनी !
मेरे मन की इक ही कामना,
रहे सप्त जनम तू संगिनी !! सूर्यदीप
वो देख सुशोभित यामिनी,
चन्द्र की प्रियकर चाँदनी !
है रत्नजडित तारों का गगन,
सुन्दर समीर की रागिनी !!
कहीं जल बरसाता इक जलधर,
कहीं खूब कड़कती दामिनी !
मेरे मन की इक ही कामना,
रहे सप्त जनम तू संगिनी !! सूर्यदीप
January 6 at 2:21pm · · 6
52. Rashmi Nainwal
"मुझे पता है... आज तुम किसी और की हो...और
हमारे बीच एक ऐसी दीवार है... जिसके इस पार मैं और उस पास तुम.. हमेशा रहोगी...
पर उन खुशबुओं का कोई क्या कर सकता है...जिन्हें कोई दीवार नहीं रोक सकती,,.. जो आज भी मेरे मन में घर बनाये हुए है...वही पहले प्यार की खुशबू...वही महक..जो कभी तेरे गेसुओं के जरिये मुझे नसीब थी...वो तुम्हारे होंठ... जो सिर्फ और सिर्फ मेरी चाहत की ही बातें करते थे... और तुम्हारी वह खूबसूरत हंसी.. जो मेरी जिंदगी में एक खूबसूरत सुबह की तरह, खुशनुमां मौसम की तरह कई बार...हर बार आई.. और जिसने मुझे जिंदगी को जीना सिखाया.. वो...सिर्फ तुम ही तो थी..."
पर उन खुशबुओं का कोई क्या कर सकता है...जिन्हें कोई दीवार नहीं रोक सकती,,.. जो आज भी मेरे मन में घर बनाये हुए है...वही पहले प्यार की खुशबू...वही महक..जो कभी तेरे गेसुओं के जरिये मुझे नसीब थी...वो तुम्हारे होंठ... जो सिर्फ और सिर्फ मेरी चाहत की ही बातें करते थे... और तुम्हारी वह खूबसूरत हंसी.. जो मेरी जिंदगी में एक खूबसूरत सुबह की तरह, खुशनुमां मौसम की तरह कई बार...हर बार आई.. और जिसने मुझे जिंदगी को जीना सिखाया.. वो...सिर्फ तुम ही तो थी..."
53. अमित सिंह
चंद टुकड़े नसीब रोटी के,
सर पे उनके भी कोई साया हो...
लेके ख्वाइश के कोई कतरे,
गुजारिश पे उनके आया हो...
है सिफारिश यही, उस खुदा से मेरी,
घर पे उनके भी कोई तुझसा रहनुमाया हो !!! सूर्यदीप ९/१/२०१२
सर पे उनके भी कोई साया हो...
लेके ख्वाइश के कोई कतरे,
गुजारिश पे उनके आया हो...
है सिफारिश यही, उस खुदा से मेरी,
घर पे उनके भी कोई तुझसा रहनुमाया हो !!! सूर्यदीप ९/१/२०१२
54. रघु स्वामी
करूँ नित्य भजन, रहूँ नृत्य मगन,
गाऊं गीत मधुर सुखकारी मैं !
करूँ दीप प्रजल, भये नैन सजल,
बनूँ परमातम हितकारी मैं !! सूर्यदीप - ९/१/२०१२
गाऊं गीत मधुर सुखकारी मैं !
करूँ दीप प्रजल, भये नैन सजल,
बनूँ परमातम हितकारी मैं !! सूर्यदीप - ९/१/२०१२
55. Suman Ranjan
इस उदासी का सबब, पूछ न हमसे
हमदम....
है खता मेरी, मैं न लौटा....उसने आवाज़ तो दी थी....!!
है खता मेरी, मैं न लौटा....उसने आवाज़ तो दी थी....!!
January 9 at 1:01pm · · 7
56. Deep Dimri
है लक्ष्य प्रखर
पर तू है निडर
नहीं तनिक भ्रमित
नहीं तू विचलित
नहीं मान का ध्यान
न सन्मान का भान
हे पथिक निरंतर
तू चलता चल...
तू चलता चल..... (सूर्यदीप - १०/१/२०१२_
पर तू है निडर
नहीं तनिक भ्रमित
नहीं तू विचलित
नहीं मान का ध्यान
न सन्मान का भान
हे पथिक निरंतर
तू चलता चल...
तू चलता चल..... (सूर्यदीप - १०/१/२०१२_
57. सूर्यदीप अंकित
त्रिपाठी
आरजू हो न सकी अब्त, यकीनन तेरी,
फिर खुली आँख जो, दर पे हुई दस्तक तेरी !
बिखरा सामान आशियाँ का आराईश मांगे,
शायद उसने भी सुनी होगी कोई, आहट तेरी !! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १०/१/२०१२
अब्त - नष्ट, ख़तम
आराईश - सजावट, खूबसूरती
फिर खुली आँख जो, दर पे हुई दस्तक तेरी !
बिखरा सामान आशियाँ का आराईश मांगे,
शायद उसने भी सुनी होगी कोई, आहट तेरी !! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १०/१/२०१२
अब्त - नष्ट, ख़तम
आराईश - सजावट, खूबसूरती
58. Jay Kandpal
"का कहिन
काकी, हम तो परेशान हुई गवा.... तनिक तुम ही काहे नहीं समझाई देत है
हमार मुनवा को.... कि कौनो काम धाम करे, अर फिर गौरी को गौना कराई के घर लाई के, हमका एक-दुई
बच्चन का मुंह दिखाई दे...पर हमार मुनवा तो सुनत ही नाहीं... परमेसर ही भलो करे...
हमार तो नाम ही मिटटी में मिलाई देई इ मुनवा ने.... "
59. Sunita Sharma
"प्रेम की परिपूर्णता बिना अहसासों की अनुभूति, बिना स्पर्श, बिना वेदना और
बिना समर्पण के संभव नहीं हो सकती"
60. 'उत्तम पत्ता नंबर ६' प्रतियोगिता Baba Jays
अहसास, विश्वास, आभास
"तुम्हारा
खूबसूरत अहसास मेरे विश्वास को आज भी मज़बूत बनाये हुए है. मैं जानता हूँ कि तुम हो, यहीं कहीं हो और
चुपके से मुझे देख मुस्कुरा रही हो कभी जब झरोखे से आती हवाएं उस विंड चैम्प से
टकराती हैं तो घंटियों कि वो शांत आवाजें तुम्हारे क़दमों की उस पायल का आभास कराती
हैं जिन्होंने मुझ में आज भी संगीत को जिंदा रखा है"
61. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
बात कल की, चलो, भूलें हम-तुम .
फिर नई जिंदगी बसालें हम-तुम ...
आज अपना है ये पराया तो नहीं....
क्यूँ न इसको गले लगालें हम-तुम.....
कल न जाने, हम कहाँ और...कहाँ तुम हो, सफ़र में...
एक पत्थर चलो इस राह, लगालें हम-तुम.. !!! .. सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ११/१/२०१२
फिर नई जिंदगी बसालें हम-तुम ...
आज अपना है ये पराया तो नहीं....
क्यूँ न इसको गले लगालें हम-तुम.....
कल न जाने, हम कहाँ और...कहाँ तुम हो, सफ़र में...
एक पत्थर चलो इस राह, लगालें हम-तुम.. !!! .. सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ११/१/२०१२
62. रघु स्वामी
'कबसे.....
कबसे हम दौनों में ये बेगानापन आ गया अंजू.... और कब से हम दौनों अपने आपको एक
दुसरे से अलग मान बैठे... 'तुम्ही ने तो कहा था...कि हमारे सपने एक
हैं.. हमारे अरमान एक हैं...फिर....फिर आज ऐसा क्या हो गया जो हमारे रास्ते अलग हो
गए...औरतुम बाहर जाकर कोई काम करना चाहती हो...?'
'हमारे रास्ते अलग नहीं है आशीष... हम आज भी एक हैं... और हमेशा रहेंगे .. लेकिन... मैं नहीं चाहती कि मैं तुम पर बोझ बनूँ... मैं खुद भी अपनी कोई पहचान बनाना चाहती हूँ... तुम्हारा सहारा बनना चाहती हूँ.... ताकि हमारी तमाम उम्मीदें, हमारे सपने... हमारे अरमान हम मिलकर पूरे कर सकें...और अपनी इस जिंदगी को और बेहतर बना सकें...अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य दे सकें....'
'हमारे रास्ते अलग नहीं है आशीष... हम आज भी एक हैं... और हमेशा रहेंगे .. लेकिन... मैं नहीं चाहती कि मैं तुम पर बोझ बनूँ... मैं खुद भी अपनी कोई पहचान बनाना चाहती हूँ... तुम्हारा सहारा बनना चाहती हूँ.... ताकि हमारी तमाम उम्मीदें, हमारे सपने... हमारे अरमान हम मिलकर पूरे कर सकें...और अपनी इस जिंदगी को और बेहतर बना सकें...अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य दे सकें....'
63. Poonam Bahuguna Joshi
सतीत्व , निर्ज , चुहल
"बरसों बाद आज फिर इस निर्ज़
(वीरान, उजाड़) महल में
शहनाइयों की गूँज सुनाई देगी...फिर से शुभ संगीत समाएगा इसके कोने-कोने में..
तरुनाई फिर से चुहलबाजी (आनंद, मज़ा)
करती दिखाई देगी.. फिर से अयोध्या के इस महल में सतीत्व (पवित्रता, शुद्धता) का पदार्पण होगा...आज प्रभु राम, सीता और लक्ष्मण के साथ बनवास के बाद फिर
से अयोध्या पधारे हैं."
हे
चित्राक्ष,
आज इतने विचलित क्यूँ हो...
क्यूँ हर्षुल मुख व्याकुल, चिंतित,
कहो किस कारण भरमाये हो..
देख खेल दारुका का मन,
मेरा विचलित और व्याकुल है,
काठ के तन में, भावों का सागर,
किस तरह उमड़ने को आकुल है...
चित्राक्ष... सुन्दर नेत्रवाला....
दारुका - कठपुतली....
हर्षुल - खुशमिजाज़
आज इतने विचलित क्यूँ हो...
क्यूँ हर्षुल मुख व्याकुल, चिंतित,
कहो किस कारण भरमाये हो..
देख खेल दारुका का मन,
मेरा विचलित और व्याकुल है,
काठ के तन में, भावों का सागर,
किस तरह उमड़ने को आकुल है...
चित्राक्ष... सुन्दर नेत्रवाला....
दारुका - कठपुतली....
हर्षुल - खुशमिजाज़
65. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
"स्मृति आपके विश्वास को बनाये रखती है... और बनाये रखती है उस
अहसास को, उस आभास को, जो कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में आज भी आपके दिल के एक कोने में घर बनाये
है... जिसकी दीवारों पर कोई नाम आज भी अंकित है.."
66. Kaajal Dev Sareswer
खोया बचपन खेल-खिलोनों में ...
जवानी, नींद और सपनों में..
आज बुढ़ापा खोज रहा है...
प्यार कहीं-कहीं अपनों में...!! सूर्यदीप -१७/१/२०१२
जवानी, नींद और सपनों में..
आज बुढ़ापा खोज रहा है...
प्यार कहीं-कहीं अपनों में...!! सूर्यदीप -१७/१/२०१२
67. प्रतिबिम्ब
बड़थ्वाल
आकिल, तरणि , खलक
आकिल - भौंरा
तरणि - सूर्य
खलक - घड़ा
आकिल घट-घट भ्रम, भ्रमण करे,
घट-घट करे भ्रमण धरा, तरणि !
नभ अंचल तारक भ्रमण करे,
करे चंद्र भ्रमण सदा धरनि !!
मनु प्रेम-पियासा जल खोजे,
फिरे खलक कटि सदा रमणी !! सूर्यदीप - १७/१/२०१२
तरणि - सूर्य
खलक - घड़ा
आकिल घट-घट भ्रम, भ्रमण करे,
घट-घट करे भ्रमण धरा, तरणि !
नभ अंचल तारक भ्रमण करे,
करे चंद्र भ्रमण सदा धरनि !!
मनु प्रेम-पियासा जल खोजे,
फिरे खलक कटि सदा रमणी !! सूर्यदीप - १७/१/२०१२
68. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
चैन एक पल भी नहीं....
नैन लेते हैं...
भीगी पलकों से हर पल ये...
राह तकते हैं...
रैन कटती है भीगे तकिये में...
आह चुभती है, दर्द डसते हैं...
बिखरे अरमान मेरे
मेघ से बरसते हैं... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १८/०१/२०१२
नैन लेते हैं...
भीगी पलकों से हर पल ये...
राह तकते हैं...
रैन कटती है भीगे तकिये में...
आह चुभती है, दर्द डसते हैं...
बिखरे अरमान मेरे
मेघ से बरसते हैं... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १८/०१/२०१२
69. Madhuri Kunwar
वल्लाह मिजाज़ तेरा....क़यामत है और
क्या...
तनहा हैं..मगर दूर हैं... शराफत है और क्या....
जहाँ सहरो-शाम थी तेरी, आगोश में मेरे...
मौसम की तरह वो बदल गए.. आदत है और क्या... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १८/१/२०१२
तनहा हैं..मगर दूर हैं... शराफत है और क्या....
जहाँ सहरो-शाम थी तेरी, आगोश में मेरे...
मौसम की तरह वो बदल गए.. आदत है और क्या... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १८/१/२०१२
70. सूर्यदीप अंकित
त्रिपाठी
गैर उल्फत का मज़ा लेते हैं...
संगदिल दिल को सज़ा देते हैं...
खुशियाँ वो बाँटते ज़माने में...
ग़म इस गरीब के नाम करते हैं....!!
संगदिल दिल को सज़ा देते हैं...
खुशियाँ वो बाँटते ज़माने में...
ग़म इस गरीब के नाम करते हैं....!!
71. Sunita Sharma
, ,
जीवन पथ, पथरीला साधो..
पग-पग संघर्ष का डेरा रे..
बंजारे सा जीव भटकता,
ले जीवन-मृत्यु का फेरा रे !!
पग-पग संघर्ष का डेरा रे..
बंजारे सा जीव भटकता,
ले जीवन-मृत्यु का फेरा रे !!
72. Vinod Bhagat
किस कवि की तुम छवि,
किस कवि का गीत हो....
रवि सी तेजोमय हो तुम...
पूर्ण-चंद्र सी प्रतीत हो... {सूर्यदीप}
किस कवि का गीत हो....
रवि सी तेजोमय हो तुम...
पूर्ण-चंद्र सी प्रतीत हो... {सूर्यदीप}
73. अमित सिंह
कोई दरवाज़ा मेरे घर की तरफ खुलता है...
एक चेहरा फिर झरोखे पे नज़र आता है..
नज़रें उठतीं हैं ज़माने की, दीद में उसके..
ईद का चाँद रोज़ मेरी गली में निकलता है... !!!
एक चेहरा फिर झरोखे पे नज़र आता है..
नज़रें उठतीं हैं ज़माने की, दीद में उसके..
ईद का चाँद रोज़ मेरी गली में निकलता है... !!!
74. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
आत्म-बोध - आत्मा अथवा स्वयं के अस्तिव
का होना और उसे मानना..
आत्म-चेतना - आत्मा अथवा स्वयं के अस्तित्व को जागृत करना, स्थापित करना.
आत्म-विकास - आत्मा अथवा स्वयं के अस्तित्व का उपरोक्त दौनों पद्धतियों द्वारा सुमुचित विकास अथवा परिपक्व करना.
आत्म-चेतना - आत्मा अथवा स्वयं के अस्तित्व को जागृत करना, स्थापित करना.
आत्म-विकास - आत्मा अथवा स्वयं के अस्तित्व का उपरोक्त दौनों पद्धतियों द्वारा सुमुचित विकास अथवा परिपक्व करना.
75. Rashmi Nainwal
नन्हा बचपन
कच्ची मिटटी और मिटटी के खिलोने हैं...
चंचल यौवन
गीली मिटटी, हाथों से फिसलती है..
खोता यौवन
सूखी मिटटी, रेत सी टूटती रहती है...
कच्ची मिटटी और मिटटी के खिलोने हैं...
चंचल यौवन
गीली मिटटी, हाथों से फिसलती है..
खोता यौवन
सूखी मिटटी, रेत सी टूटती रहती है...
76. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
, ,
कोरे कागज़ पे लिखा तेरा हर्फ़ मैं जो, पढ़ न सका...
दिल के शब्दों को बताये, वो पत्र तुझे लिख न सका....
तेरी पायल की झनक...वो एक बात बता गयी मुझको...
तेरी कंगन की खनक...वो एक हाल सुना गई मुझको..
जो कई लम्हों से दिल मेरा तुझे कह न सका ....
कोरे कागज़ ....
दिल के शब्दों को बताये, वो पत्र तुझे लिख न सका....
तेरी पायल की झनक...वो एक बात बता गयी मुझको...
तेरी कंगन की खनक...वो एक हाल सुना गई मुझको..
जो कई लम्हों से दिल मेरा तुझे कह न सका ....
कोरे कागज़ ....
77. Baba Jays
यूँ न मायूस हो फ़ुरकत में,
न हो नाशाद जिंदगी से.....
दिल से महसूस मुझे कर...
न हो आजिज़ तू बंदगी से........ {सूर्यदीप} फुरकत - जुदाई, विरह .. नाशाद - नाखुश, अप्रसन्न... आजिज़ - उदासीन
न हो नाशाद जिंदगी से.....
दिल से महसूस मुझे कर...
न हो आजिज़ तू बंदगी से........ {सूर्यदीप} फुरकत - जुदाई, विरह .. नाशाद - नाखुश, अप्रसन्न... आजिज़ - उदासीन
78. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मेरे लौटे हुए ख़त...आज भी इसी अलमारी में बंद हैं...और
तुम्हारे लौट कर आने का इंतज़ार कर रहे हैं...
जब तुम आओगी ना...तुम्हें हर रोज़ एक ख़त पढ़कर सुनाया करूँगा....और तुम्हें बताऊंगा... कि किस तरह से मैंने इन मामूली से दिखने वाले कागजों में अपने लफ़्ज़ों को अपने खून की स्याही में डुबो डुबो कर उतारा है... कैसे इन कागजों पर पड़ी सलवटें, मेरी रातों की कहानियाँ कह रही हैं... कैसे इन कागजों में उतरा मेरा सुर्ख लहू... इन्हीं लफ़्ज़ों के बीच दब-दब कर...काला हो चुका है...मेरे किसी काले भयानक सपने की तरह... जहाँ तुम हो ही नहीं.... और में ये भी जानता हूँ... जब तुम ये ख़त पढ़ोगी तो तुम्हारी पलकें भी जरूर गीली हो जाएँगी....और आँसुओं से भीगे कुछ पुराने अधूरे लफ़्ज़ों का रंग फिर से गहरा और सुर्ख हो जायेगा...और शायद ये पूरा ख़त भी......
जब तुम आओगी ना...तुम्हें हर रोज़ एक ख़त पढ़कर सुनाया करूँगा....और तुम्हें बताऊंगा... कि किस तरह से मैंने इन मामूली से दिखने वाले कागजों में अपने लफ़्ज़ों को अपने खून की स्याही में डुबो डुबो कर उतारा है... कैसे इन कागजों पर पड़ी सलवटें, मेरी रातों की कहानियाँ कह रही हैं... कैसे इन कागजों में उतरा मेरा सुर्ख लहू... इन्हीं लफ़्ज़ों के बीच दब-दब कर...काला हो चुका है...मेरे किसी काले भयानक सपने की तरह... जहाँ तुम हो ही नहीं.... और में ये भी जानता हूँ... जब तुम ये ख़त पढ़ोगी तो तुम्हारी पलकें भी जरूर गीली हो जाएँगी....और आँसुओं से भीगे कुछ पुराने अधूरे लफ़्ज़ों का रंग फिर से गहरा और सुर्ख हो जायेगा...और शायद ये पूरा ख़त भी......
79. Sunita Sharma
,
शुभ विवाह संदीप बधाई
ऋतू वसंत घर वासंती लाई !!
मधु अवसर, मधु-माह सुहाई,
मधु आशीष सूर्य-मन आई !!
ऋतू वसंत घर वासंती लाई !!
मधु अवसर, मधु-माह सुहाई,
मधु आशीष सूर्य-मन आई !!
80. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
,
चंचल-चंचल तोरे चपल नयन,
मुस्कान अधर लिए कोमलता !
सरिता सम धवल तू चंचला,
पग-पग धरे मृग सी चंचलता !! सूर्यदीप ०६/०२/२०१२
मुस्कान अधर लिए कोमलता !
सरिता सम धवल तू चंचला,
पग-पग धरे मृग सी चंचलता !! सूर्यदीप ०६/०२/२०१२
81. Mamta Joshii
,
भई दीवानी मैं तोरे कारन,
तोरी प्रीत में फिरती पगलाई !!
दर्शन को पिय, पिहू-पिहू खोजत,
वन-उपवन, नित अमराई !!
मिलन-लगन रुत एक पल छिन की,
फिर रुत विरहा ले अंगडाई !! सूर्यदीप - ०६/०२/२०१२
तोरी प्रीत में फिरती पगलाई !!
दर्शन को पिय, पिहू-पिहू खोजत,
वन-उपवन, नित अमराई !!
मिलन-लगन रुत एक पल छिन की,
फिर रुत विरहा ले अंगडाई !! सूर्यदीप - ०६/०२/२०१२
82. Jay Kandpal
, ,
ठोकरें मेरा इरादा कभी रोका नहीं
करती.....
मैं कभी रुकता हूँ सफ़र में जो दिखे सूरत तेरी !! :)
मैं कभी रुकता हूँ सफ़र में जो दिखे सूरत तेरी !! :)
83. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
उत्तम पत्ता
प्रतियोगिता नंबर ७ के लिए Baba Jays जी के शब्द चुने है
संगीत सुगम, सुंदर-सरस,
ओढ़े वस्त्र सु-राग !
रचना विधि मन-रंजना,
जामे रति-अनुराग !!
अर्थात - सगीत वही सुंदर है, सरस है, जो सच्चे रागों का वस्त्र धारण करता है. और रचना जिसमें श्रृंगार (विरह/मिलन) के साथ-साथ अनुराग (प्रेमी-प्रेयसी) और प्रेम (वात्सल्य, स्नेह, आदर) भी हो ऐसी कृति विधाता को भी प्रसन्न रखती है.. "शुभ" सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ८/०२/२०१२
ओढ़े वस्त्र सु-राग !
रचना विधि मन-रंजना,
जामे रति-अनुराग !!
अर्थात - सगीत वही सुंदर है, सरस है, जो सच्चे रागों का वस्त्र धारण करता है. और रचना जिसमें श्रृंगार (विरह/मिलन) के साथ-साथ अनुराग (प्रेमी-प्रेयसी) और प्रेम (वात्सल्य, स्नेह, आदर) भी हो ऐसी कृति विधाता को भी प्रसन्न रखती है.. "शुभ" सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ८/०२/२०१२
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
— with सूर्यदीप अंकित
त्रिपाठी.
यहाँ मुझे यह कहते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि इन खूबसूरत
रचनाओं के मध्य मेरी सरल रचना को चुनकर जो सम्मान मुझे दिया है...उसके लिए मैं आप
सभी मित्रों का और निर्णायक मंडल का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ... तीन पत्ती एक
ऐसा समूह है, या मैं इसको एक स्कूल कहूँ तो ज्यादा उचित होगा.... जहाँ पर आप हर एक पल कुछ
न कुछ हिंदी साहित्य और काव्य के सन्दर्भ में सीखते रहते हो...
लेकिन प्रतिबिम्ब जी साथ ही मुझे इस बात का दुःख भी है कि इस स्कूल में बहुत से छात्र-छात्राएं अनुपस्तिथ रहा करते हैं.. हो सकता है...कोई जरूरी कारण हो... लेकिन कुछ समय यदि इस शिक्षण संस्थान को भी दिए जाएँ तो बहुत प्रसन्नता होगी..
ये एक ऐसा स्थल है जहाँ पर आप अपने आपको, अपनी लेखन क्षमता को और अधिक निखार सकते हो...अपना शब्द ज्ञान बड़ा सकते हो, चाहे वो हिंदी शब्द हो, फ़ारसी या उर्दू... हालांकि यहाँ हिंदी शब्द ज्यादा उपयोग किये जाते हैं...और चाहिए भी... लेकिन साथ ही साथ उर्दू अथवा फारसी शब्दों का ज्ञान भी कभी-कभी मिल जाया करता है....
अतः एक बार फिर से तीन पाती समूह और निर्णायक मंडल समेत समस्त मित्रो का आभार व्यक्त करता हूँ.. धन्यवाद..
लेकिन प्रतिबिम्ब जी साथ ही मुझे इस बात का दुःख भी है कि इस स्कूल में बहुत से छात्र-छात्राएं अनुपस्तिथ रहा करते हैं.. हो सकता है...कोई जरूरी कारण हो... लेकिन कुछ समय यदि इस शिक्षण संस्थान को भी दिए जाएँ तो बहुत प्रसन्नता होगी..
ये एक ऐसा स्थल है जहाँ पर आप अपने आपको, अपनी लेखन क्षमता को और अधिक निखार सकते हो...अपना शब्द ज्ञान बड़ा सकते हो, चाहे वो हिंदी शब्द हो, फ़ारसी या उर्दू... हालांकि यहाँ हिंदी शब्द ज्यादा उपयोग किये जाते हैं...और चाहिए भी... लेकिन साथ ही साथ उर्दू अथवा फारसी शब्दों का ज्ञान भी कभी-कभी मिल जाया करता है....
अतः एक बार फिर से तीन पाती समूह और निर्णायक मंडल समेत समस्त मित्रो का आभार व्यक्त करता हूँ.. धन्यवाद..
84. Virendra Sinha
"ठीक
है...अमित,.... तुमने जो कहना था..कह दिया....अब थोड़ी देर के
लिए जो मैं कह रहा हूँ...उसे सुनो...
हार और जीत तो जिंदगी में लगी ही रहती है.. हारने पर अपने आपको यूँ एक कमरे में बंद कर लेना... किसी से भी बातें न करना...अपने आपको दुनिया से अलग कर लेना.. ये ठीक नहीं है.... आज तुम्हारी हार हुई है....तो ...तो क्या जिंदगी ख़त्म हो गई...क्या ये इस दुनियां का आखरी दिन था.... क्या अगर अभी रात है तो कल सुबह नहीं होगी... सीखो कुछ प्रकृति से... वो कभी हार नहीं माना करती... उठो.. देखो रोशनदान से....ताको आसमान की तरफ.. देखो दूर ही सही वो तारा टिमटिमा रहा है कि नहीं... उसकी रौशनी भले ही तुम्हें कोई तपिश या उजाला नहीं दे सकती, लेकिन अपनी उस रौशनी के बल पर उसने अपना अस्तित्व बनाये रखा है.... उठो..खोलो अपनी खिड़की और झांको इस खिड़की से बाहर... कहीं रुकी है दुनियां...किसी ने रोका है चलना...नहीं ना... तो फिर ...फिर तुम क्यूँ रुक गए अमित.... खोलो अपना दरवाज़ा और चुनो अपनी राह और...चल पड़ो...पलट कर मत देखो....जितना आगे चलते जाओगे....मंजिल तुम्हारे और अधिक नज़दीक आती जाएगी....और फिर देखना...एक दिन तुम अपनी मंजिल पर खड़े होकर....जब पलट के देखोगे....तो पाओगे कि....कितने ही...लोग हैं जो तुम्हारे पीछे चल पड़े हैं....और तुम...तुम सबसे आगे खड़े होकर उनको... मुस्कुराते हुए देख रहे होंगे...."
हार और जीत तो जिंदगी में लगी ही रहती है.. हारने पर अपने आपको यूँ एक कमरे में बंद कर लेना... किसी से भी बातें न करना...अपने आपको दुनिया से अलग कर लेना.. ये ठीक नहीं है.... आज तुम्हारी हार हुई है....तो ...तो क्या जिंदगी ख़त्म हो गई...क्या ये इस दुनियां का आखरी दिन था.... क्या अगर अभी रात है तो कल सुबह नहीं होगी... सीखो कुछ प्रकृति से... वो कभी हार नहीं माना करती... उठो.. देखो रोशनदान से....ताको आसमान की तरफ.. देखो दूर ही सही वो तारा टिमटिमा रहा है कि नहीं... उसकी रौशनी भले ही तुम्हें कोई तपिश या उजाला नहीं दे सकती, लेकिन अपनी उस रौशनी के बल पर उसने अपना अस्तित्व बनाये रखा है.... उठो..खोलो अपनी खिड़की और झांको इस खिड़की से बाहर... कहीं रुकी है दुनियां...किसी ने रोका है चलना...नहीं ना... तो फिर ...फिर तुम क्यूँ रुक गए अमित.... खोलो अपना दरवाज़ा और चुनो अपनी राह और...चल पड़ो...पलट कर मत देखो....जितना आगे चलते जाओगे....मंजिल तुम्हारे और अधिक नज़दीक आती जाएगी....और फिर देखना...एक दिन तुम अपनी मंजिल पर खड़े होकर....जब पलट के देखोगे....तो पाओगे कि....कितने ही...लोग हैं जो तुम्हारे पीछे चल पड़े हैं....और तुम...तुम सबसे आगे खड़े होकर उनको... मुस्कुराते हुए देख रहे होंगे...."
85. Himanshu Kukreti
चार चवन्नी जब मिले, रुपया वो कहलाय..
बंटवारा जब करे कोई तो, अठन्नी रह जाय !!
अर्थात - समूह से ताकत मिलती है.. बंटवारा हमेशा कमजोर होता है.... :)
बंटवारा जब करे कोई तो, अठन्नी रह जाय !!
अर्थात - समूह से ताकत मिलती है.. बंटवारा हमेशा कमजोर होता है.... :)
86. Baba Jays
प्यार-नाराज़गी है दो पहलू..
दुनिया में रिश्ता इक सिक्का है ... !!
जब तलक चमक है, तो जम के खूब चले..
जब गिरे नज़र से तो कहें खोटा है... !! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १३/०२/२०१२
दुनिया में रिश्ता इक सिक्का है ... !!
जब तलक चमक है, तो जम के खूब चले..
जब गिरे नज़र से तो कहें खोटा है... !! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १३/०२/२०१२
87. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
जैसे जन्नत में है ख़ुदा आदिल,
वैसे तू बंदगी में है शामिल !!
जैसे सेहरा में काँरवां महफ़िल,
वैसे तू जिंदगी में है शामिल !!
मेरी सुबह की आफताब किरन,
तुझसे शामों की चांदनी हासिल !!
लौटी खुशियाँ जो लौट तू आई,
खोई किश्ती को मिल गया साहिल !!...
(आदिल - सच्चा, नेक.. आफताब - सूरज. साहिल - किनारा, मंजिल)
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १७/०२/२०१२
वैसे तू बंदगी में है शामिल !!
जैसे सेहरा में काँरवां महफ़िल,
वैसे तू जिंदगी में है शामिल !!
मेरी सुबह की आफताब किरन,
तुझसे शामों की चांदनी हासिल !!
लौटी खुशियाँ जो लौट तू आई,
खोई किश्ती को मिल गया साहिल !!...
(आदिल - सच्चा, नेक.. आफताब - सूरज. साहिल - किनारा, मंजिल)
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १७/०२/२०१२
88. Arvind Barthwal
प्रतिबिम्ब
बड़थ्वाल Saroj Negi Kalsi जी एवं Usha Sharma जी सुंदर
भाव ... बस शब्द 'आँखें' है 'आँखों' नही ..... अगर शब्द वही प्रयोग होंगे तो असली आनंद आएगा 3 पत्ती का
प्रतिबिम्ब जी...
शिव रात्रि की शुभकामनाएं....यहाँ मैं थोडा आपसे असहमत हूँ...शब्द "आँखें" ठीक है...लेकिन कोई इसका प्रयोग यादें आँखों, में भी करता है तो बुरा नहीं हैं....हाँ अगर वर्तनी बदल जाए तो आप कह सकते हैं...जैसे..अँखियाँ, नैन इत्यादि...ऐसा नहीं होना चाहिए... आँखें शब्द एक युग्म प्रतीकात्मक शब्द है और यहाँ सरोज जी ने जो शब्द प्रयोग किया है "आँखों" वो भी युग्म (एकल) प्रतीकात्मक है..इसलिए ये सही होना चाहिए....बाकी आप का आदेश सर्वोपरी :))
शिव रात्रि की शुभकामनाएं....यहाँ मैं थोडा आपसे असहमत हूँ...शब्द "आँखें" ठीक है...लेकिन कोई इसका प्रयोग यादें आँखों, में भी करता है तो बुरा नहीं हैं....हाँ अगर वर्तनी बदल जाए तो आप कह सकते हैं...जैसे..अँखियाँ, नैन इत्यादि...ऐसा नहीं होना चाहिए... आँखें शब्द एक युग्म प्रतीकात्मक शब्द है और यहाँ सरोज जी ने जो शब्द प्रयोग किया है "आँखों" वो भी युग्म (एकल) प्रतीकात्मक है..इसलिए ये सही होना चाहिए....बाकी आप का आदेश सर्वोपरी :))
माँ की महिमा सा दुनियाँ में कुछ और
नहीं हैं...
माँ की ममता के आँचल का कोई छोर नहीं है....
दो आँखें मेरी माँ की, मेरे दो जहाँ हैं....
पावन गोदी और लोरी सा कुछ और नहीं है.... सूर्यदीप २०/०२/२०१२
माँ की ममता के आँचल का कोई छोर नहीं है....
दो आँखें मेरी माँ की, मेरे दो जहाँ हैं....
पावन गोदी और लोरी सा कुछ और नहीं है.... सूर्यदीप २०/०२/२०१२
89. Vandana Thakur
अनंत है, अगोचरी,
ब्रह्म-गुण, एक मंत्र है |
आदि वो, चराचरी,
आरंभ वो, वो ही अंत है || सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २७/०२/२०१२
ब्रह्म-गुण, एक मंत्र है |
आदि वो, चराचरी,
आरंभ वो, वो ही अंत है || सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २७/०२/२०१२
90. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
अंश
अंचल
अंजन
हे मात तेरे अंचल का अंश मैं,
तेरे नयनों का ही अंजन हूँ...|
तेरी आँखों का मैं इक तारा,
तेरी पीड़ा का एक रंजन हूँ... || सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २७/०२/२०१२
अंचल
अंजन
हे मात तेरे अंचल का अंश मैं,
तेरे नयनों का ही अंजन हूँ...|
तेरी आँखों का मैं इक तारा,
तेरी पीड़ा का एक रंजन हूँ... || सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २७/०२/२०१२
91. Jay Kandpal
अब्र क़यामत का बरसने को है, के तू है कहाँ...
अब्रू आँखों को अब ढकने को है, के तू है कहाँ...
हुई काज़ल सी मेरी रात, जैसे घायल की कोई बात....
मेरा मरहम है तेरा रहम..
के तू है कहाँ........के तू है कहाँ...... सूर्यदीप.... ०३/०३/२०१२
अब्र - बादल, अब्रू - भोंह (पलक) March 3 at 11:16am · · 6
अब्रू आँखों को अब ढकने को है, के तू है कहाँ...
हुई काज़ल सी मेरी रात, जैसे घायल की कोई बात....
मेरा मरहम है तेरा रहम..
के तू है कहाँ........के तू है कहाँ...... सूर्यदीप.... ०३/०३/२०१२
अब्र - बादल, अब्रू - भोंह (पलक) March 3 at 11:16am · · 6
92. Mamta Joshii
होली की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनायें
!!!.....
उड़त गुलाल-गुलाबी रंग अंगना..
आज पिया रंग मोहे तो है रंगना....
कुमकुम- कुसुम बहार है आई ...
पिय अधर मिठास, तन-मन छाई ... सूर्यदीप.. ०६/०३/२०१२
उड़त गुलाल-गुलाबी रंग अंगना..
आज पिया रंग मोहे तो है रंगना....
कुमकुम- कुसुम बहार है आई ...
पिय अधर मिठास, तन-मन छाई ... सूर्यदीप.. ०६/०३/२०१२
March 6 at 10:08am · · 7
93. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
सभी मित्रों को.... होली की रंगों से महकी, गुजियों
की भीनी-भीनी और फागुन की फुहारों से भीगी-भीगी बधाई और शुभकामनायें...!!!
बरसे फाग फुहार गगन से,
मन उमंग अति छाए...
रंग बिरंगी धरती भीगी,
संग कान्हा रति भाए...
गाल गुलाल गुलाबी दमके,
मुख अति रंग सुहाए....
भर पिचकारी पिया मोहे मारे..
भीगे तन मन हाए...
बरसे फाग फुहार गगन से........ सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०७/०३/२०१२
बरसे फाग फुहार गगन से,
मन उमंग अति छाए...
रंग बिरंगी धरती भीगी,
संग कान्हा रति भाए...
गाल गुलाल गुलाबी दमके,
मुख अति रंग सुहाए....
भर पिचकारी पिया मोहे मारे..
भीगे तन मन हाए...
बरसे फाग फुहार गगन से........ सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०७/०३/२०१२
March 7 at 9:58am · · 7
94. Baba Jays
मैं न मंदिर में बसा हूँ, न किसी भी गिरजा
में,
न ही मस्जिद, न ही बानी, न कदा-औ-कज़ा में,
न किसी मय के पयाले में, मधुशाला में,
न किताबों में रहा करता हूँ, न कोई शाला में,
मुझसे मिलना हो तो इस क़ल्ब में रहम रखना,
रखना होंठों पे हंसी, आँख को कुछ नम रखना,
किसी मासूम की मुस्कान को, बनाये रखना,
इन अंधेरों में भी इक आग, जलाये रखना,
और कुछ भी मैं न चाहूँगा, न दरकार करूँगा,
तू जहाँ चाहेगा, आऊँगा, न इनकार करूँगा,
मैं रहूँगा वहीँ चाहेगा, जहाँ तू रखना,
तेरी हर बात सुनूँगा, रहूँगा तेरी रज़ा में...... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी.... १२/०३/२०१२
न ही मस्जिद, न ही बानी, न कदा-औ-कज़ा में,
न किसी मय के पयाले में, मधुशाला में,
न किताबों में रहा करता हूँ, न कोई शाला में,
मुझसे मिलना हो तो इस क़ल्ब में रहम रखना,
रखना होंठों पे हंसी, आँख को कुछ नम रखना,
किसी मासूम की मुस्कान को, बनाये रखना,
इन अंधेरों में भी इक आग, जलाये रखना,
और कुछ भी मैं न चाहूँगा, न दरकार करूँगा,
तू जहाँ चाहेगा, आऊँगा, न इनकार करूँगा,
मैं रहूँगा वहीँ चाहेगा, जहाँ तू रखना,
तेरी हर बात सुनूँगा, रहूँगा तेरी रज़ा में...... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी.... १२/०३/२०१२
March 12 at 1:49pm · · 10
95. Himanshu Kukreti
जब तुम थी..मेरी जिंदगी में....मेरी
जिंदगी बनकर....तब मैं अपनी जिंदगी को जी ही नहीं पा रहा था...उसे महसूस नहीं कर
पा रहा था..लेकिन तब भी तुमने कभी मुझे रोका नहीं...कभी दो शब्द बोलकर टोका
नहीं... और अब...अब..जबकि जिंदगी में तुम नहीं हो तो न जाने क्यूँ...क्यूँ मेरा
दिल तुम्हें हर घडी महसूस करना चाहता है..तुम्हें छूना चाहता है...तुम्हें फिर से
पाना चाहता है...क्या जाने ये कैसी कशिश है....और न जाने क्यूँ...है.....?
March 13 at 12:43pm · · 7
96. Reena Gdangwal
जन्म लेकर, जीता जीवन,
है अजब मानव महान...
कर्म और सदधर्म उत्तम,
श्रेष्ठ है उसका ये ज्ञान....
है पुरातन, ब्रह्म रूपक,
दिव्य, मानवता का द्योतक,
व्योम प्रगति का ये सूचक,
पूर्ण, प्रेरक और पूरक...
अधीर जन्म से मृत्यु का,
उसे बोध निज कृत-कृत्य का,
वो है शील, पथ कर्त्तव्य का,
वो प्रतीक विश्व के गर्व का...... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १५/०३/२०१२
है अजब मानव महान...
कर्म और सदधर्म उत्तम,
श्रेष्ठ है उसका ये ज्ञान....
है पुरातन, ब्रह्म रूपक,
दिव्य, मानवता का द्योतक,
व्योम प्रगति का ये सूचक,
पूर्ण, प्रेरक और पूरक...
अधीर जन्म से मृत्यु का,
उसे बोध निज कृत-कृत्य का,
वो है शील, पथ कर्त्तव्य का,
वो प्रतीक विश्व के गर्व का...... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १५/०३/२०१२
March 15 at 11:18am · · 7
97. आनंद कुनियाल
जिसका हमें था इंतज़ार....
वो शतक लग गया, लग गया आज....
सचिन रहे जिंदाबाद...जिंदाबाद..
दिन ये कितना है सुखद और महान आज....
सचिन रहे जिंदाबाद...जिंदाबाद.. !!! सूर्यदीप 17/03/2012
वो शतक लग गया, लग गया आज....
सचिन रहे जिंदाबाद...जिंदाबाद..
दिन ये कितना है सुखद और महान आज....
सचिन रहे जिंदाबाद...जिंदाबाद.. !!! सूर्यदीप 17/03/2012
March 17 at 11:26am · · 4
98. Shishpal Sajwan
कितने खूबसूरत,
नज़ारे दिखते हैं, दुनियाँ के रंगों के, देखो ना....
कितने खूबसूरत,
इशारे करते हैं, बगिया के, फूलों को देखो ना...
जैसे तेरे नैना...नील समंदर झल्काए.....
जैसे तेरी बातें... मुझको दूर कहीं ले जाये....
और दिलाये चैन मुझको,
तेरी बाँहों का संबल.... देखो ना.....
कितना, रंग-बिरंगा, रूप है तेरे आँचल का... देखो ना...
कितने खूबसूरत.....
नज़ारे दिखते हैं, दुनियाँ के रंगों के, देखो ना....
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी....(गीतिका) १७/०३/२०१२
नज़ारे दिखते हैं, दुनियाँ के रंगों के, देखो ना....
कितने खूबसूरत,
इशारे करते हैं, बगिया के, फूलों को देखो ना...
जैसे तेरे नैना...नील समंदर झल्काए.....
जैसे तेरी बातें... मुझको दूर कहीं ले जाये....
और दिलाये चैन मुझको,
तेरी बाँहों का संबल.... देखो ना.....
कितना, रंग-बिरंगा, रूप है तेरे आँचल का... देखो ना...
कितने खूबसूरत.....
नज़ारे दिखते हैं, दुनियाँ के रंगों के, देखो ना....
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी....(गीतिका) १७/०३/२०१२
March 17 at 12:33pm · · 4
99. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
हरी दरसन बिन, मिटे नाहीं
तृष्णा,
प्रभु मेरे इन दउ नैनन की..!
हरी दरसन, इक बसन मैं राखूँ ,
भूलूँ तृपल अगन इस जीवन की...!!
मैं ना चाहूँ, प्रेम-सरोवर,
योग-भोग ना भक्ति रे !
दीजो सुख मींरा सम मौको,
पाऊं जनम की तृप्ति रे !!........... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी १९/०३/२०१२ March 19 at 11:37am · · 4
प्रभु मेरे इन दउ नैनन की..!
हरी दरसन, इक बसन मैं राखूँ ,
भूलूँ तृपल अगन इस जीवन की...!!
मैं ना चाहूँ, प्रेम-सरोवर,
योग-भोग ना भक्ति रे !
दीजो सुख मींरा सम मौको,
पाऊं जनम की तृप्ति रे !!........... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी १९/०३/२०१२ March 19 at 11:37am · · 4
100. Rashmi Nainwal
है दोपहर अलसाई सी,
पुरवाइयाँ गरमाई सी,
ये गर्मियों की धूप तनहा...
फिरती तमतमाई सी...
दिन के क़दमों में है सुस्ती,
घर के भीतर कैद मस्ती,
ये वक़्त बैठा है निठल्ला,
शोर को तरसे मोहल्ला,
मन सोच कुछ न समझ ही पाए,
जैसे नींद आधी, भरमाई सी...
है दोपहर अलसाई सी,
पुरवाइयाँ गरमाई सी............. सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २६/०३/२०१२ ,
पुरवाइयाँ गरमाई सी,
ये गर्मियों की धूप तनहा...
फिरती तमतमाई सी...
दिन के क़दमों में है सुस्ती,
घर के भीतर कैद मस्ती,
ये वक़्त बैठा है निठल्ला,
शोर को तरसे मोहल्ला,
मन सोच कुछ न समझ ही पाए,
जैसे नींद आधी, भरमाई सी...
है दोपहर अलसाई सी,
पुरवाइयाँ गरमाई सी............. सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २६/०३/२०१२ ,
March 26 at 5:06pm · · 6
101. Shanno Aggarwal
मन रे अब सुधि, संग रख ले तू...
पल-पल जीवन बीता जाए....
चिंता तज, चिंतन मन ला अब,
चिंता तन, मन खाए...
प्रभु दर्शन, कीर्तन नहीं बिसरा,
पद प्रभु अंत सोही पाए.... पल पल जीवन बीता जाए ....
मन रे.......
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०५/०४/२०१२
पल-पल जीवन बीता जाए....
चिंता तज, चिंतन मन ला अब,
चिंता तन, मन खाए...
प्रभु दर्शन, कीर्तन नहीं बिसरा,
पद प्रभु अंत सोही पाए.... पल पल जीवन बीता जाए ....
मन रे.......
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०५/०४/२०१२
April 5 at 12:15pm · · 6
102. Kaajal Dev Sareswer
पूरा वो है जो पूरा भर दे
बर्तन खाली खाली सा,
फिर भी न छलके, न ही फैले,
सींचे सुमन वो माली सा !!
आधा-अधूरा न सुख कोई,
प्यासा मन दर-दर को रोई,
ना ही जन्म का ध्येय वो जाने,
ना धन-तन रखवाली का !! .... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०६/०४/२०१२
बर्तन खाली खाली सा,
फिर भी न छलके, न ही फैले,
सींचे सुमन वो माली सा !!
आधा-अधूरा न सुख कोई,
प्यासा मन दर-दर को रोई,
ना ही जन्म का ध्येय वो जाने,
ना धन-तन रखवाली का !! .... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०६/०४/२०१२
April 6 at 11:38am · · 5
103. Anandi Rawat
सदगुरु साईं, संग सुहाई
सद्गुण साईं संग समाई !!
सद-नेही, सद-चरित्र लखाई,
जेहि आचरण, साईं मन भायी !!
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १०/०४/२०१२
सद्गुण साईं संग समाई !!
सद-नेही, सद-चरित्र लखाई,
जेहि आचरण, साईं मन भायी !!
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १०/०४/२०१२
April 10 at 12:24pm · · 4
104. Ajitsinh Jagirdar
प्रेम प्रतीक राग मधु कारी,
सोही अनुराग प्रकट महतारी,
जनम-मरन मन संसय भारी,
वीतराग भव पारहूँ तारी !!
अर्थात - जब आपका जीवन, सरल एवं सुगम पथ पर चल रहा होता है तो वह आपके लिए एक मधुर राग (संगीत) लय की तरह होता है जो आपको संतुष्ट और तृप्त करता है. जिस प्रकार एक शिशु अपनी माँ का अनुराग पाकर तृप्त हो जाता है.. और जब आप को ये जीवन बोझिल लगने लगे, जब आपको इस जीवन की आसक्तियां विचलित करने लगे..जब आप जीवन मरन के प्रश्नों के भीतर अपने आपको बंधा हुआ महसूस करने लगे....तब इन्हीं आसक्तियों, व्यसनों से वीतराग आपको दूर ले जाता है, ये वो मधुर संगीत है जिसे सुनकर अपना कर आप इन सांसारिक व्यसनों से पृथक हो जाया करते हैं... "शुभ" ... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी . १०/०४/२०१२
सोही अनुराग प्रकट महतारी,
जनम-मरन मन संसय भारी,
वीतराग भव पारहूँ तारी !!
अर्थात - जब आपका जीवन, सरल एवं सुगम पथ पर चल रहा होता है तो वह आपके लिए एक मधुर राग (संगीत) लय की तरह होता है जो आपको संतुष्ट और तृप्त करता है. जिस प्रकार एक शिशु अपनी माँ का अनुराग पाकर तृप्त हो जाता है.. और जब आप को ये जीवन बोझिल लगने लगे, जब आपको इस जीवन की आसक्तियां विचलित करने लगे..जब आप जीवन मरन के प्रश्नों के भीतर अपने आपको बंधा हुआ महसूस करने लगे....तब इन्हीं आसक्तियों, व्यसनों से वीतराग आपको दूर ले जाता है, ये वो मधुर संगीत है जिसे सुनकर अपना कर आप इन सांसारिक व्यसनों से पृथक हो जाया करते हैं... "शुभ" ... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी . १०/०४/२०१२
April 10 at 12:47pm · · 1
105. Raghvendra Awasthi
"प्राचीन ग्रंथों में मृत्यु को ही मुक्ति या मोक्ष द्वार माना
गया है..जो अटल है, सत्य है....पर इंसान इस सत्य को जानकार भी इससे डरा करता है, इससे दूर रहा
करता है, और इस सत्य को अपनाने से कतराता है"
April 11 at 3:02pm · · 1
106. सूर्यदीप अंकित
त्रिपाठी
"मनुष्य जब
पानी में अपनी परछाई को देखता है, तो वो उस प्रतिबिम्ब में इस कदर खो जाता है, की उसी
प्रतिबिम्ब को अपना अस्तित्व समझने लगता है. लेकिन जब कहीं से यथार्थ का एक कंकड़
उसकी परछाई पर आ गिरता है तो वह अपने आप में लौट आता है"
April 12 at 1:36pm · · 7
107. भरत शर्मा
बानी प्रेम की बोल के, अरि बन जाए मीत,
जीवन जीव न सम समझ, गई जो मित्रता बीत !! सूर्यदीप २१/०४/२०१२
जीवन जीव न सम समझ, गई जो मित्रता बीत !! सूर्यदीप २१/०४/२०१२
April 21 at 10:53am · · 7
मित्रो प्रयास सराहनीय !
यहाँ पर आपको मेरा कथन शायद आधा अधूरा लगे इसीलिये मैं पूरा करना चाहूँगा कि काजल जी द्वारा दिए गए तीन शब्दों को अपने पूरे भाव के साथ अगर हम आधे अधूरे या पूरे अथवा आधी अधूरी पूरी इन शब्दों में भी व्यक्त करते हैं तो यह गलत नहीं होगा! इस बात कि चर्चा पहले भी हुई है..क्यूंकि हमारा प्रयोजन दिए गए शब्दों से अर्थपूर्ण भावों को वाक्य, काव्य या छंद में ज्यादा से ज्यादा हिंदी भाषा के उपयोग से व्यक्त करना है! वैसे इस बात पर सूर्यदीप जी या प्रति जी जैसे गुणी मित्र अधिक प्रकाश डाल सकेंगे! शुभं!
यहाँ पर आपको मेरा कथन शायद आधा अधूरा लगे इसीलिये मैं पूरा करना चाहूँगा कि काजल जी द्वारा दिए गए तीन शब्दों को अपने पूरे भाव के साथ अगर हम आधे अधूरे या पूरे अथवा आधी अधूरी पूरी इन शब्दों में भी व्यक्त करते हैं तो यह गलत नहीं होगा! इस बात कि चर्चा पहले भी हुई है..क्यूंकि हमारा प्रयोजन दिए गए शब्दों से अर्थपूर्ण भावों को वाक्य, काव्य या छंद में ज्यादा से ज्यादा हिंदी भाषा के उपयोग से व्यक्त करना है! वैसे इस बात पर सूर्यदीप जी या प्रति जी जैसे गुणी मित्र अधिक प्रकाश डाल सकेंगे! शुभं!
April 25 at 12:57pm · · 2
109. सूर्यदीप अंकित
त्रिपाठी
प्रिय मित्रो,
सादर अभिवादन,
सर्वप्रथम, जो भी सम्मानीय मित्र यहाँ अपने शब्दों को प्रेषित करता है, उसे चाहिए कि वो स्वयं अपने विचार सर्वप्रथम उन शब्दों के साथ प्रेषित करे.. क्यूंकि केवल शब्दों का भोग लगाना काफी नहीं होता.....उन शब्दों के साथ आपके सद-भावों का सम्मिश्रण भी अति आवश्यक है... ताकि आपका भोग सार्थक हो...
दूसरी और जहाँ आप शब्दों में परिवर्तन की बात कर रहें हैं.. वहां मैं ये पूर्व भी विदित कर चुका हूँ कि शब्दों की वर्तनी में सूक्ष्म परिवर्तन मान्य हुआ करता है, पर उस शब्द का अर्थ और भाव में परिवर्तन नहीं होना चाहिए ये एक शर्त हुआ करती है.
शब्द खुद में इतने सक्षम हुआ करते हैं कि वो अपनी बात को स्वयं बेहतर ढंग से प्रदर्शित कर सकते हैं,, यदि उनपर कोई भद्र-जन कुछ मात्राओं का प्रयोग कर, उसकी वर्तनी में पर्तिवर्तन करता है..और उसके भाव और अर्थ को ज्यूँ का त्यूँ रख पाता है तो वो सोने में सुहागा ही कहलायेगा... इति...शुभ...
सादर अभिवादन,
सर्वप्रथम, जो भी सम्मानीय मित्र यहाँ अपने शब्दों को प्रेषित करता है, उसे चाहिए कि वो स्वयं अपने विचार सर्वप्रथम उन शब्दों के साथ प्रेषित करे.. क्यूंकि केवल शब्दों का भोग लगाना काफी नहीं होता.....उन शब्दों के साथ आपके सद-भावों का सम्मिश्रण भी अति आवश्यक है... ताकि आपका भोग सार्थक हो...
दूसरी और जहाँ आप शब्दों में परिवर्तन की बात कर रहें हैं.. वहां मैं ये पूर्व भी विदित कर चुका हूँ कि शब्दों की वर्तनी में सूक्ष्म परिवर्तन मान्य हुआ करता है, पर उस शब्द का अर्थ और भाव में परिवर्तन नहीं होना चाहिए ये एक शर्त हुआ करती है.
शब्द खुद में इतने सक्षम हुआ करते हैं कि वो अपनी बात को स्वयं बेहतर ढंग से प्रदर्शित कर सकते हैं,, यदि उनपर कोई भद्र-जन कुछ मात्राओं का प्रयोग कर, उसकी वर्तनी में पर्तिवर्तन करता है..और उसके भाव और अर्थ को ज्यूँ का त्यूँ रख पाता है तो वो सोने में सुहागा ही कहलायेगा... इति...शुभ...
April 25 at 1:21pm · · 4
आनंद कुनियाल सूर्यदीप जी, अपेक्षित रूप से सुंदर ढंग से मित्रों की असमंजसता दूर करने
के लिए आभार! इस विश्वाश के साथ की अब मित्रों को अपनी अभिव्यक्तियाँ मनोवांछित
प्रभावी ढंग से प्रेषित करने में और सुविधा रहेगी..शुभं!
April 25 at 2:14pm · · 1
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी जी आनंद कुनियाल जी एवं
मित्रो
सूर्यदीप जी एवं आनंद जी आप की बातों से सहमत हूँ मैं और खुशी भी हुई कि आप और कुछ एक मित्र समूह के उद्देश्यों की ओर केवल शब्दो और भावो से सहयोग ही नही करते बल्कि उस मे क्या चल रहा है इस पर नज़र रखते है और सुधार कैसे हो इस पर भी राय समय समय पर देते हैं। 3-4 बाते जो सभी ध्यान रखे तो [जैसा आप मित्रो ने लिखा ]
१. शब्द [पोस्ट मे ] लिखने वाला सदस्य अपने भाव [टिप्पणी रूप] मे जरूर लिखे
२. शब्द वही प्रयोग करे जो लिखे है [ सूर्यदीप जी येसा इसलिए कि सदस्यो को भावो को शब्द रूप मे ढालने का अभ्यास मिले जो कि हमारा उद्देश्य भी है - शब्दोंन से परिचय और भावो को लिखने और सीखने का अभ्यास ]
३. अपने शब्द लिखकर ही सदस्य होने की ज़िम्मेदारी से मुक्त नही होते है - अपने भाव, दूसरे सदस्यों के शब्द और भाव तथा उन पर अपनी अभिव्यक्ति देना भी शामिल है। खाना पूर्ति नही ....
४. शब्दों का चयन सुने सुनाये या आमतौर पर प्रयोग होने वाले शब्दो से नही बल्कि नए शब्दो को चुनिये और उसमे भाव जोड़ कर दिशा प्रदान करे ..... ..... शुभं April 26 at 7:32am · · 2
सूर्यदीप जी एवं आनंद जी आप की बातों से सहमत हूँ मैं और खुशी भी हुई कि आप और कुछ एक मित्र समूह के उद्देश्यों की ओर केवल शब्दो और भावो से सहयोग ही नही करते बल्कि उस मे क्या चल रहा है इस पर नज़र रखते है और सुधार कैसे हो इस पर भी राय समय समय पर देते हैं। 3-4 बाते जो सभी ध्यान रखे तो [जैसा आप मित्रो ने लिखा ]
१. शब्द [पोस्ट मे ] लिखने वाला सदस्य अपने भाव [टिप्पणी रूप] मे जरूर लिखे
२. शब्द वही प्रयोग करे जो लिखे है [ सूर्यदीप जी येसा इसलिए कि सदस्यो को भावो को शब्द रूप मे ढालने का अभ्यास मिले जो कि हमारा उद्देश्य भी है - शब्दोंन से परिचय और भावो को लिखने और सीखने का अभ्यास ]
३. अपने शब्द लिखकर ही सदस्य होने की ज़िम्मेदारी से मुक्त नही होते है - अपने भाव, दूसरे सदस्यों के शब्द और भाव तथा उन पर अपनी अभिव्यक्ति देना भी शामिल है। खाना पूर्ति नही ....
४. शब्दों का चयन सुने सुनाये या आमतौर पर प्रयोग होने वाले शब्दो से नही बल्कि नए शब्दो को चुनिये और उसमे भाव जोड़ कर दिशा प्रदान करे ..... ..... शुभं April 26 at 7:32am · · 2
110. प्रभा मित्तल
जंगम छन-छन, जीवन अविरल,
कित रैन-बसेरो, मन तू करे !
पथहीन ज्यूँ जड़, गतिहीन रहे,
कहो काहे बिधि, भव-नद पार करे !!
चाहे सकल स्थावर, वश कर ले,
तन क्षार भये, जग कछु न रहे !!........... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २७/०४/२०१२
जंगम- MOVABLE - गतिशील
स्थावर - जड़ सम्पदा, अचल सम्पति
कित रैन-बसेरो, मन तू करे !
पथहीन ज्यूँ जड़, गतिहीन रहे,
कहो काहे बिधि, भव-नद पार करे !!
चाहे सकल स्थावर, वश कर ले,
तन क्षार भये, जग कछु न रहे !!........... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २७/०४/२०१२
जंगम- MOVABLE - गतिशील
स्थावर - जड़ सम्पदा, अचल सम्पति
April 27 at 12:42pm · · 7
111. Rohini
Shailendra Negi
आसमां अब्र से क्यूँ ढक गया देखो,
छाया किस तरह से गुमनाम, अधेरा देखो,
जैसा सुनते थे, क़यामत, ये कहीं वो तो नहीं...
आफताबी पे लगा एक ग्रहण, क्यूँ देखो,
क्यूँ जला कर गया मेरी कब्र में वो चरागे-अदब,
मेरे कातिल, वो मेरे यार की घुटन देखो !!
अब्र - बादल,
आफताबी - सूरज, किरणें
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०३/०५/२०१२
छाया किस तरह से गुमनाम, अधेरा देखो,
जैसा सुनते थे, क़यामत, ये कहीं वो तो नहीं...
आफताबी पे लगा एक ग्रहण, क्यूँ देखो,
क्यूँ जला कर गया मेरी कब्र में वो चरागे-अदब,
मेरे कातिल, वो मेरे यार की घुटन देखो !!
अब्र - बादल,
आफताबी - सूरज, किरणें
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०३/०५/२०१२
May 3 at 11:27am · · 8
112. सूर्यदीप अंकित
त्रिपाठी
मात मोहि इक कारन दीजो,
केही सिय-राम लखन वन भेजो ,,
केही कारन पित स्वर्ग सिधाए,
भुवन अनल केही काज लगाए,,
(अंश - रामचरित-गीतिका (भरत -कैकई संवाद) - सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी
केही सिय-राम लखन वन भेजो ,,
केही कारन पित स्वर्ग सिधाए,
भुवन अनल केही काज लगाए,,
(अंश - रामचरित-गीतिका (भरत -कैकई संवाद) - सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी
May 10 at 11:50am · · 5
113. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
कुठि सुमेरु मथनी
रचना करि,
सूत वासुकी शेष बनायो !
पान गरल कंठस्थ कियो तब,
शिव-शम्भू नीलकंठ कहायो !!
देव-दनुज सब करि परिश्रम,
दुर्लभ कठिन सुधा-रस पायो !
मोहनी रूप धरि नारायण,
लेही अमी दति दूर भगायो !!.. सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १५/०५/२०१२
सूत वासुकी शेष बनायो !
पान गरल कंठस्थ कियो तब,
शिव-शम्भू नीलकंठ कहायो !!
देव-दनुज सब करि परिश्रम,
दुर्लभ कठिन सुधा-रस पायो !
मोहनी रूप धरि नारायण,
लेही अमी दति दूर भगायो !!.. सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १५/०५/२०१२
Tuesday at 1:48pm · · 5
114. Kusum Sharma
वो कहानी, मुझे फिर आपकी, सुना के गया....
खामखाँ याद, मुझे आपकी दिला के गया !!
उसकी आँखों में कहीं, अटका हुआ पानी था,
बूंद दो चार, मेरी आँख में गिरा के गया !!.
ख़त जो सिरहाने रखे थे, संभाल के मैंने,
आखरी तेरी निशानी भी, वो चुरा के गया !! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १७/०५/२०१२
खामखाँ याद, मुझे आपकी दिला के गया !!
उसकी आँखों में कहीं, अटका हुआ पानी था,
बूंद दो चार, मेरी आँख में गिरा के गया !!.
ख़त जो सिरहाने रखे थे, संभाल के मैंने,
आखरी तेरी निशानी भी, वो चुरा के गया !! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १७/०५/२०१२
Yesterday at 4:08pm · · 7
115. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~ उत्तम पत्ता प्रतियोगिता नम्बर ८
हनन, हयात (जीवन/जान), हरिद्रा
(हल्दी, जंगल, मंगल)
मन विचार, सिय
हरनहूँ आया,
भेष सुसंत, दसग्रीव बनाया !!
भेद मरीच मृग, जान न पाई,
राम-लखन सिय, संग पैठाई !!
इत हर प्रान, मृग, रघुपति लीनो,
उत रावन हर जानकी लीनों !!
हनन कियो सिय मन विस्वासा,
रघुपति मनहूँ रहे निस्वासा !!
लौट लखन-प्रभु, कुटीर को आये,
देखि न सिय कुटी, अति भरमाये !!
देखि हरिद्रा कन-कन छानी,
कछु न मिलही, हयात निसानी !!
हाहाकार भयो मन माहि,
जलबिन माछ ज्यूँ तडपत जाहि !!..... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १८/०५/२०१२
(अंश - राम चरित गीतिका )
भेष सुसंत, दसग्रीव बनाया !!
भेद मरीच मृग, जान न पाई,
राम-लखन सिय, संग पैठाई !!
इत हर प्रान, मृग, रघुपति लीनो,
उत रावन हर जानकी लीनों !!
हनन कियो सिय मन विस्वासा,
रघुपति मनहूँ रहे निस्वासा !!
लौट लखन-प्रभु, कुटीर को आये,
देखि न सिय कुटी, अति भरमाये !!
देखि हरिद्रा कन-कन छानी,
कछु न मिलही, हयात निसानी !!
हाहाकार भयो मन माहि,
जलबिन माछ ज्यूँ तडपत जाहि !!..... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १८/०५/२०१२
(अंश - राम चरित गीतिका )
May 18 at 1:46pm · · 14
116. Kiran Arya
मंज़र-ए-आईना दिखा, नज़र में जो बसा
था...
जो शख्स दिखा बनके अक्श, मुझसे जुदा वहाँ था... :) s a t.....
जो शख्स दिखा बनके अक्श, मुझसे जुदा वहाँ था... :) s a t.....
May 22 at 11:25am · · 7
117. सूर्यदीप अंकित
त्रिपाठी
साभार... Suman Thapliyal जी ~~
(लफ्ज़ तुम्हारे...और गीत मेरे...01)
~~~~~~
रहा तिमिर घिरा चहुँ और प्रिये,
एक दीप जला, तम हो प्रज्जल !
एक क्षण अब रुक, दे दीप बुझा,
मुख दर्शन दे, कर मन उज्जवल !!
मन की तृष्णा, इक मरू-भूमि
तेरे काले गेसू आस मेरी,
अधरों का रस अब, कुछ तो बरस,
वर्षा से बुझे न प्यास मेरी
!!
मधुमास मिलन, मधु तेरे नयन,
तुम लिप्त कस्तूरी गात
प्रिये,
मैं मधुप विचरता
आकुल-व्याकुल,
रस-प्रेम तरसता आज प्रिये
!!
तुम नख से शिख तक , एक कला ,
विचलित उर का आभास प्रिये ,
ये मधुर समर्पण भावों का ,
है दृष्टिपटल पर आज प्रिये
!!
मै प्रतिक्षण एक प्रतीक्षा
में ,
एक याचक सा, अधिकार लिए,
क्षणभंगुर से इस जीवन का ,
ये सत्य करो, स्वीकार प्रिये !! ..... सुर्यदीप अंकित
त्रिपाठी - २४/०५/२०१२
May 24 at 2:34pm · · 9
118. Kiran Arya
जाल मकड़
जीवन तृष्णा मय
जीव जकड ...
जीवन तृष्णा मय
जीव जकड ...
May 24 at 3:04pm · · 9
119.
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
(लफ्ज़
तुम्हारे....गीत मेरे) .. सपने-०२
सपने, कुछ अपने, संग ले चलूँ मैं...
कुछ यादें, मुलाकातें, कुछ रंग ले चलूँ मैं...
फीकी सी होगी, दुनियां मेरी जब,
रूसवाइयाँ संग होगी...
चेहरा तेरा अक्श बनके रहेगा,
तन्हाईयाँ संग होगी....
टूटा....एक शीशा, मेरे दिल सा,
बिखर-बिखर गया...
देखो... दुनियां वालो, गुल माली से,
एक बिछड़ गया...
चुन के टूटे टुकड़े, दिल के ले चलूँ मैं....
कुछ यादें, मुलाकातें, कुछ रंग ले चलूँ मैं...
सपने, कुछ अपने, संग ले चलूँ मैं....... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी ... २६/०५/२०१२
सपने, कुछ अपने, संग ले चलूँ मैं...
कुछ यादें, मुलाकातें, कुछ रंग ले चलूँ मैं...
फीकी सी होगी, दुनियां मेरी जब,
रूसवाइयाँ संग होगी...
चेहरा तेरा अक्श बनके रहेगा,
तन्हाईयाँ संग होगी....
टूटा....एक शीशा, मेरे दिल सा,
बिखर-बिखर गया...
देखो... दुनियां वालो, गुल माली से,
एक बिछड़ गया...
चुन के टूटे टुकड़े, दिल के ले चलूँ मैं....
कुछ यादें, मुलाकातें, कुछ रंग ले चलूँ मैं...
सपने, कुछ अपने, संग ले चलूँ मैं....... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी ... २६/०५/२०१२
May 26 at 11:39am · · 9
खेल शब्दों का - भावों का : [खेल प्रतियोगिता नंबर १]
व्यक्ति
आसक्ति
अनुरक्ति
"व्यक्ति जिस पल से आसक्ति और अनुरक्ति में भेद करना सीख जाएगा.....उसी पल से....उसे अपने स्वयं के होने का ज्ञान और उद्देश्य मिल जाएगा..."
आसक्ति
अनुरक्ति
"व्यक्ति जिस पल से आसक्ति और अनुरक्ति में भेद करना सीख जाएगा.....उसी पल से....उसे अपने स्वयं के होने का ज्ञान और उद्देश्य मिल जाएगा..."
121. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
दुर्जन दूर ही राखिये, यद्यपि तज आवास !
सत्जन मीत बनाइये, मनहूँ लाइ विस्वास !!
मनहूँ लाइ बिस्वास मन, कीजे अथ श्रीकाम !
विद्या विधि बनाई ले, हिय रख मनु विश्राम !! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०९/०६/२०१२
सत्जन मीत बनाइये, मनहूँ लाइ विस्वास !!
मनहूँ लाइ बिस्वास मन, कीजे अथ श्रीकाम !
विद्या विधि बनाई ले, हिय रख मनु विश्राम !! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०९/०६/२०१२
2 hours ago · · 1