है दोपहर अलसाई सी,
पुरवाइयाँ गरमाई सी,
ये गर्मियों की धूप तनहा...
फिरती तमतमाई सी...
दिन के क़दमों में है सुस्ती,
घर के भीतर कैद मस्ती,
ये वक़्त बैठा है निठल्ला,
शोर को तरसे मोहल्ला,
मन सोच कुछ न समझ ही पाए,
जैसे नींद आधी, भरमाई सी...
है दोपहर अलसाई सी,
पुरवाइयाँ गरमाई सी............. सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २६/०३/२०१२
पुरवाइयाँ गरमाई सी,
ये गर्मियों की धूप तनहा...
फिरती तमतमाई सी...
दिन के क़दमों में है सुस्ती,
घर के भीतर कैद मस्ती,
ये वक़्त बैठा है निठल्ला,
शोर को तरसे मोहल्ला,
मन सोच कुछ न समझ ही पाए,
जैसे नींद आधी, भरमाई सी...
है दोपहर अलसाई सी,
पुरवाइयाँ गरमाई सी............. सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २६/०३/२०१२
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