Monday, September 26, 2011

For Mr. Deepak Aroroa - 27/09/2011

पूर्णिमा जी...
बाकी तो सब अच्छा लिखा लेकिन.... ये क्या लिख डाला "ये दुनियां मर्दों की है सिर्फ मर्दों की"
मैंने वास्तविक हालातों को सामने रखा और माना....माना की बराबरी नहीं है... पुरुषों का आधिपत्य स्त्रीत्व पर भारी पड़ता है...पर उसका कारण है..एक सोच जो सदियों से चली आ रही है.. और सोच में परिवर्तन किया जा सकता है...इसलिए अपने आपको कमजोर मानना एक भूल है..और उस सोच को बढावा देना है.. जो चलती आ रही है... पूर्णिमा जी...आपने खुद कहा है...की नारी एक एक रूप काली,  दुर्गा और चंडिका भी है...और आप खुद ही नारी को कमजोर कह रही हैं...
कहाँ से हुआ जन्म इन रूपों का.... किसने दिया जन्म... काली को, दुर्गा को और चंडिका को.. या तो वो एक माँ (स्त्री) होगी...या फिर एक सोच दौनों में से कुछ भी हो सकती है... इसलिए अपने आपको कमजोर मान लेना...और ये सोचकर बैठ जाना कि ये समाज पुरुषों का है...हम नारियां कुछ भी नहीं कर सकती...ये धारणा गलत है... यह धारणा उस रूढ़िवादी सोच को बल ही देगी..कमजोर नहीं करेगी....इसलिए... उठो और पुरुषों के बराबर खड़े हो जाओ...और ये मत सोचो कि हम उनके बराबर नहीं हैं.. और सोच के लिए....बराबर, छोटा या बड़ा होना जरूरी नहीं.... बस हौसला, जूनून और एक सार्थक सोच की जरूरत होती है.... धन्यवाद... "शुभ"

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