ये अहसास भी बहुत काम की चीज़ है न... नरेश जी... Naresh Matia ji
कई बार तो ये हमारे इतने पास होते हैं..कि इनकी खुशबू हमारे मन-मस्तिस्क में रच-बस जाती है...
और कई बार...ये सुखद स्वप्नों की तरह होते हैं... जो आपकी अपनी कामनाओं आपकी अतृप्त इच्छाओं के कारण आपको दिखाई देते हैं.. और इन सबके बीच फंसा बेचारा प्रेम... जिसकी आवाज़ अतृप्त इच्छाओं और कामनाओं के शोरगुल में सुनाई नहीं पड़ती... और शायद तभी...हाँ.. तभी अहसास का जन्म हुआ होगा....जो आपको कुछ देर के लिए...स्वप्न की तरह सत्यता की ओर ले जाता है..और आप और आपकी आत्मा बस वहीँ रह जाती है....
आपकी कविता के सन्दर्भ में... वही अहसास...जो अभी तक आपने महसूस किया हुआ है...और उसी अहसास से आप अभी तक जुड़े हुए हैं...शायद वो प्रेम ही रहा होगा जिसने आपके इस अहसास को जन्म दिया... "शुभ" धन्यवाद :))
कई बार तो ये हमारे इतने पास होते हैं..कि इनकी खुशबू हमारे मन-मस्तिस्क में रच-बस जाती है...
और कई बार...ये सुखद स्वप्नों की तरह होते हैं... जो आपकी अपनी कामनाओं आपकी अतृप्त इच्छाओं के कारण आपको दिखाई देते हैं.. और इन सबके बीच फंसा बेचारा प्रेम... जिसकी आवाज़ अतृप्त इच्छाओं और कामनाओं के शोरगुल में सुनाई नहीं पड़ती... और शायद तभी...हाँ.. तभी अहसास का जन्म हुआ होगा....जो आपको कुछ देर के लिए...स्वप्न की तरह सत्यता की ओर ले जाता है..और आप और आपकी आत्मा बस वहीँ रह जाती है....
आपकी कविता के सन्दर्भ में... वही अहसास...जो अभी तक आपने महसूस किया हुआ है...और उसी अहसास से आप अभी तक जुड़े हुए हैं...शायद वो प्रेम ही रहा होगा जिसने आपके इस अहसास को जन्म दिया... "शुभ" धन्यवाद :))
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