Thursday, August 4, 2011

For Mr. Ashwani Sridhar - Sansad ki Kaamchori par...


बंधू... आज नहीं.. पिछले कई वर्षों से संसद एक बहस की नहीं बल्कि एक तरह की बाज़ार बन चुका है, जहाँ रोज़ खरीदने और बेचने वाले आते हैं.
और अपने फायदे का सौदा करके चाय नास्ता करके अपनी तनख्वाह का एक दिन पक्का करके चले आते हैं.
उन्हें उस आम आदमी से कोई मतलब नहीं या कोई वास्ता नहीं.. जिसके लिए उन्हें यहाँ बैठ कर, सोच विचार कर कोई सार्थक निर्णय लेना होता है.
क्योंकि आज नेता नामक ये शब्द इतना घटिया और बाजारू हो चुका है, कि शायद इन्हें इनके घर में भी वो इज्जत नहीं मिलती होगी...घरवाले भी इनके पैसे पर ऐश कररहे होंगे.. लेकिन कल कोई इन्हें आकर एक थप्पड़ भी मार जाये...तो... घरवाले भी इनका साथ नहीं देंगे..
नेता .. जिसके हाथ में एक आम आदमी अपना नेतृत्व सौंपता है, आज इसकी स्तिथि ये है कि... नेताओं के हाथ इतने गंदे हो चुके हैं कि कुछ भी अपना इनके हाथों सौंपने का मन ही नहीं करता.. लेकिन मजबूरी है....एक बेबसी है कि...हम लोकतान्त्रिक देश के नागरिक हैं...और हमें संविधान का सम्मान भी करना होगा और.. इन टुच्चे नेताओं को फिर से वोट देना होगा... यही प्रक्रिया चलती रहेगी... क्योंकि किसी ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति या उम्मीदवार को ये लोग खड़े ही नहीं होंगे देंगे....या उसे भी मरवा डालेंगे..क्योंकि... इनकी राजनीति की कोई नीति नहीं...

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