बहुत ही पारदर्शी....मुस्कान...जहाँ से..आपका वक्तित्व दिखाई दे रहा है...
मुस्कान यदि देखा जाये तो एक टीस को दबाने के लिए ही..चेहरे पर लाइ जाती है..
क्योंकि ...यहाँ आपकी कशमकश को वो प्रदर्शित करती है.... और जब कोई अंतर्मन से खुश होता है तो वह मुस्काता ही नहीं कह-कहे लगता है..
क्योंकि भीतर से.. वो ख़ुशी इतनी व्यग्र होती है की...आपके होंठ भी उसे रोक नहीं पाते और...वो स्वयं को विभाजित करके...उसे बाहर निकलने का स्थान देते हैं..जो आपको एक खूबसूरत हंसी के रूप में अक्सर सुनाई दी जा सकती है....
त्रिपाठी जी.. मुझे याद हैं,..आप से वो छोटी सी मुलाक़ात मेरे घर के बाहर आँगन की....जहाँ आप बहुत कुछ कहना चाह रहे थे.. अपनी लेखनी के माध्यम से..शायद यही एक उपयुक्त समय है... बधाई....
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