Friday, August 19, 2011

for Ms. Kiran Srivatava..... 20/08/2011

रुख हवाओं का भी हर कोई मोड़ नहीं सकता...
आँधियों में भी कोई इस कदर चल नहीं सकता ..
ये तो अन्ना का कारवां है, और है उनका जूनून..
सामने गर मंजिल हो, तो मुसाफिर रुक नहीं सकता...

तुम क्या जानो, जो कभी दो कदम चला ही नहीं..
अपने पैरों से कभी धूल को लिपटाया ही नहीं..
ये तो वो लोग हैं जो मिटते हैं, ज़माने के लिए..
है ज़माना सदा इनसे, ये ज़माने से नहीं..... सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २०/०८/२०११ 

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