1. व्यक्ति की सुन्दरता की तारीफ किसी व्यक्ति की सूरत देख के नहीं की जाती भाई साहब.... तारीफ़ की जाती है... उस सूरत से झलकती आभा की.. या सूरत से प्रदर्शित होने वाले उसके सदगुणों के प्रवाव की... उसी तरह किसी स्त्री की तुलना चाँद से नहीं बल्कि उसकी चांदनी से की जाती है.... जो उससे झलकती है. और मन को शीतल करती है.. जिसे देखकर मन चाँदी की तरह धवल और सुखद अहसास देता है.... . चाँद तो एक मात्र जरिया है.. चांदनी तक पहुँचने के लिए....
2. रमेश जी... मैं मुस्कुराया इसलिए...क्योंकि...यहाँ आप भ्रमित हो गए...जैसे दुनियाँ हो जाया करती है... चाँद को देखकर... उसकी आभा को देखकर....
2. रमेश जी... मैं मुस्कुराया इसलिए...क्योंकि...यहाँ आप भ्रमित हो गए...जैसे दुनियाँ हो जाया करती है... चाँद को देखकर... उसकी आभा को देखकर....
हर कोई खुश होकर चाँद की बढाई करता है.. लेकिन... भूल जाता है की चाँद की अपनी कोई चमक नहीं होती...वो चमकता है...सूर्य की रौशनी से..
इसलिए मैंने चाँद की चांदनी को एक आभा का नाम दिया... लोग भूल कर जाते हैं... उन्हें जो दीखता है.. उसे ही सच मान बैठते हैं...पर वास्तविकता कुछ और ही होती है...जो केवल अंतर्मन की आँखों से ही दिख पाती हैं...
और रही बात स्त्रियों की, तो सही मानो तो...कोई भी स्त्री नहीं चाहेगी कि उसको कोई टकटकी लगा कर देखा करे... चाहे वो उसका प्रियतम ही क्यों न हो..क्योंकि स्त्री चाहे कैसी भी हो.. शर्म और आदर उसका गहना हुआ करता है... और संकोच उसकी छठी इन्द्री जो उसे बुरा काम करने या करवाने से रोकती है..
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