चेहरों की इस पोथी में,
चित्र कई अलबेले हैं...
कोई अपनी कहानी आप कहे,
कुछ लोगों की सुन लेते हैं..
कुछ बच्चे हैं, जो खेल रहे,
कुछ बड़े हैं जो खिला रहे
कुछ तेरे-मेरे में उलझे,
कुछ रोते को हैं हंसा रहे,
में भी इस पोथी का हिस्सा हूँ,
किसी पृष्ट पे मैं भी दीखता हूँ,
कुछ हूँ मैं लगता अपना सा,
कुछ दुनिया सा मैं दिखता हूँ.
(सुर्यदीप) - २३/०७/२०११
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