Thursday, July 14, 2011

For Renu Mehra.... (Un ka Majaak) aur Meri... Ummeed.... 14/07/2011

दिल के टूटने का ग़म वो क्या जाने, 
ग़म के दरिया में डूबना वो क्या जाने...
उसने इक बार कहा, और हम ने बसा ली दुनियां,
टूटना फिर किसी उम्मीद का, वो क्या जाने...!!!
.......... विश्वास... आप नहीं करती... कम्बखत ये दिल करता है... और इस पर किसी का जोर नहीं... आँखें कई बार सच देखती भी हैं तो...
ये दिल उन आँखों में विश्वास की धुंध ले आती है.. और फिर से...हा फिर से...हम उम्मीद की दुनिया संजोने लगते हैं...

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