बादलों का संग पवन ने, आज फिर से पा लिया..
वृक्ष शाखाओं ने जैसे, नृत्य कर सब पा लिया..
मेघ ने देखो वहां, शीतल सा जल बरसा दिया....
शुष्क, रुष्ठ पत्थरों का, मन हरित सा कर दिया....
सूर्य भी बादल की चादर, ओढ़ के है छुप गया..
मन मेरा इन बादलों के, बीच जाकर बस गया.....
वहीँ बस गया...वहीँ रह गया......
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