बात कल की, चलो, भूलें हम-तुम .
फिर नई जिंदगी बसालें हम-तुम ...
आज अपना है ये पराया तो नहीं....
क्यूँ न इसको गले लगालें हम-तुम.....
कल न जाने, हम कहाँ और...कहाँ तुम हो, सफ़र में...
एक पत्थर चलो इस राह, लगालें हम-तुम.. !!! .. सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ११/१/२०१२
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