"ठीक है".....उसने शरारत भरी मुस्कराहट के साथ अपने सतरंगी आँचल के किनारे को अपने श्वेत दन्त पंक्तियों के बीच दबाते हुए कहा कहा - "तुम कहते हो तो...मैं मान लेती हूँ...कि तुम मुझसे प्रेम करते हो, लेकिन....लेकिन मैं.. तो तुम्हें नहीं चाहती" कहकर वो धीमी मुस्कराहट के साथ इठलाती नदी की अठखेलियों को निहारने लगी..और मैं...मैं उसे....
अचानक मेरी ओर तिरछी नज़र करती हुई वो बोल उठी... "ऐसे क्यूँ देख रहे हो"
मैं फिर भी कुछ न बोला..और यूँ ही मंद-मंद मुस्कुराते हुए उसे निहारता रहा.. उसने फिर मेरी ओर देखा...पर कुछ नहीं बोला....मुझे उसकी आँखों मैं उसका सच उभर कर मुझे दिखाई देने लगा था... उसके गालों की लाली और कंपकंपाते होंठ इस बात की गवाही दे रहे थे..कि वो भी मुझे उतना ही चाहती है..जितना कि मैं उसे...वो मुझसे अधिक देर तक नज़रें नहीं मिला पाई... और फिर से प्रकृति के उस मनोरम दृश्य को निहारने लगी.....शायद इन खामोशियों की भी अपनी आवाज़ होती है...जिसे केवल खामोश रह कर ही सुना जा सकता है... 29/12/2011
अचानक मेरी ओर तिरछी नज़र करती हुई वो बोल उठी... "ऐसे क्यूँ देख रहे हो"
मैं फिर भी कुछ न बोला..और यूँ ही मंद-मंद मुस्कुराते हुए उसे निहारता रहा.. उसने फिर मेरी ओर देखा...पर कुछ नहीं बोला....मुझे उसकी आँखों मैं उसका सच उभर कर मुझे दिखाई देने लगा था... उसके गालों की लाली और कंपकंपाते होंठ इस बात की गवाही दे रहे थे..कि वो भी मुझे उतना ही चाहती है..जितना कि मैं उसे...वो मुझसे अधिक देर तक नज़रें नहीं मिला पाई... और फिर से प्रकृति के उस मनोरम दृश्य को निहारने लगी.....शायद इन खामोशियों की भी अपनी आवाज़ होती है...जिसे केवल खामोश रह कर ही सुना जा सकता है... 29/12/2011
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