Wednesday, December 14, 2011

For Mr. Pratibimb ji - Darshan - 15/12/2011


प्रतिबिम्ब जी... आपकी इन पंक्तियों में एक "दर्शन" है... लेकिन मैं फिर भी एक दृष्टांत कहना चाहूँगा.....शायद इससे इस दर्शन को समझा जा सके.... :) 
कुछ लोग होते हैं.. जो रास्ते के पत्थरों को ठोकर मार कर आगे बढ़ते चले जाते हैं....और अपनी मंजिलों को पा जाते हैं...
मंजिल या सफलता को पाने के पश्चात वह जल्दी - जल्दी उसका भोग करने लगता है...और वही सफलता उसके व्यक्तित्व पर हावी हो जाती है, और उसके वास्तविक व्यक्तित्व या वजूज़ को उससे बहुत दूर कर देती है, फिर जब सफलता का उन्माद खत्म होता है, तो उसे अपने आस पास अपने सिवा कोई नज़र नहीं आता, वह फिर से उठना चाहता है, लेकिन सफलता का नशा जो की उसकी कमजोरी बन चुका होता है, उसे खड़ा नहीं होने देता....वह फिर से अपनी मंजिल तलाशने चल पड़ता है, रास्ते में उसे वही पत्थर फिर से मिलते हैं...लेकिन अब उसके बाजुओ में वो ताकत नहीं होती की वो उसे उठाकर साथ ले जा सके...वो उन्हीं पत्थरों से सर टकरा-टकराकर अपने आप को ख़त्म कर देते हैं....
कुछ लोग होते हैं.... जो रास्ते के पत्थरों को ठोकर नहीं मारते, अपने साथ-साथ लाद कर ले जाते हैं...पर मंजिलों को जरूर पाते हैं...चाहे कुछ देर से ही क्यों ना... वो अपनी सफलता का स्वाद चख-चख कर लेते रहते हैं....जिससे सफलता का नशा उनपर हावी नहीं हो पाता और वह सफलता के साथ-साथ चलते चलते अपने वजूद या व्यक्तितिव को भी मूल रूप से बनाये रखे होते हैं...उसे ख़त्म नहीं होने देते. यदि दुर्भाग्यवश कभी सफलता उन्हें छोड़ के चली भी जाती है..तो वो निराश नहीं होते... वो अपनी बंद अलमारी में से रास्ते के उन पत्थरों को बाहर निकालते हैं...और उनको देख और परख कर वापस उन्हें संभल देते हैं...भावी उत्तराधिकारियों के लिए.. और वो खुद फिर से अपनी मंजिलें तलाशने निकल पड़ते हैं....उन्हें मंजिल बहुत जल्द मिल जाती है....क्योंकि उनके रास्ते में उन्हें वो पत्थर नहीं मिलते..जो उसकी सफलता में रुकावट थे...क्योंकि उन पत्थरों को उसने बहुत पहले ही अपना लिया था...और उनका हल भी खोज लिया था...
तो जब भी आप किसी मंजिल की ओर चलें...तो रास्ते में आने वाली तमाम रुकावटों, पत्थरों को अपनाते हुए, उनका हल निकालते हुए, अपने साथ लेकर चले...ताकि आपके चेहरे पर...आपके व्यक्तितिव पर...उन रुकावटों, समस्याओं को हल करने का अभुभव आपके साथ ताउम्र रहे.... "शुभ" सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १५/१२/२०११ 

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