नव निधि, दस गुन ते सदा,
जेहि भूषण कर्म, सुज्ञान !
बिपदा पल संग छाडिहें,
हरी उपासना, नित ध्यान !!!
अर्थात - जिस व्यक्ति के आभूषण ही सुकर्म और सुज्ञान होते हैं, उसी के पास नव निधियों का सुख और सदगुणों का साथ होता है.
और नित्य ध्यान और हरी की उपासना करने से कोई भी विपत्ति पल भर में ही आपका साथ छोड़ देती है. "शुभ
जेहि भूषण कर्म, सुज्ञान !
बिपदा पल संग छाडिहें,
हरी उपासना, नित ध्यान !!!
अर्थात - जिस व्यक्ति के आभूषण ही सुकर्म और सुज्ञान होते हैं, उसी के पास नव निधियों का सुख और सदगुणों का साथ होता है.
और नित्य ध्यान और हरी की उपासना करने से कोई भी विपत्ति पल भर में ही आपका साथ छोड़ देती है. "शुभ
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