"ब्रह्म रचे ब्रह्माण्ड को, कर दिनकर-निशि एक,
क्षण में सृष्टी रचाई दे, कर कवि कल्पना एक !!"
अर्थात - "जिस सृष्टी को रचने के लिए ब्रह्मा अपने हाथों से अनवरत प्रयास रत रहते हैं.. उसकी रचना एक कवि, मात्र कल्पना से ही कर देता है ".
सुर्यदीप - १५/१२/२०११
No comments:
Post a Comment