"अभिव्यक्ति वह दर्शन है जो व्यक्ति के आतंरिक भावों को उसके ही शब्दों द्वारा प्रदर्शित करता है..और वह मौलिक होती हैं...
लेकिन कामना और आसक्ति उसकी कमजोरी होती है...और यह मौलिक होने के साथ-साथ परार्षित होती है..यह पैदा होती है..बढती है, पलती है....और एक दिन नष्ट हो जाती है...लेकिन अभिव्यक्ति कभी नष्ट नहीं हुआ करती.....
इसको आप ऐसे समझ सकते हैं...जैसे ये शरीर तो आपका है..साथ ही इसके गुण-अवगुण, इसका आकार-विकार, इसके कर्म-कर्तव्य भी आपके हैं...और यह नश्वर है...इसे एक दिन नष्ट होना ही है....लेकिन आत्मा....आत्मा आपकी नहीं है...अगर वो आपकी होती तो वह आपका शरीर कभी नहीं छोडती... उसपर केवल परमात्मा का अधिकार है...और वही इसके लिए नए वस्त्र या शरीर का निर्माण करता है...
"अहम् ब्रह्मा अस्मि" ये शब्द आपके नहीं हैं...ये आत्मा के हैं.. और एक शुद्ध आत्मा कामना और आसक्ति से दूर ही रहा करती है... यदि वह किसी कारण से इन आसक्तियों अथवा कामनाओं से दूर नहीं हो पाती तो वह ब्रह्म में एकाकार नहीं हो पाती और न ही नए शरीर को धारण कर पाती है...क्योंकि जब तक आत्मा आसक्त रहेगी वह भटकती ही रहेगी" "शुभ" सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ३०/१२/२०११
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