Wednesday, December 21, 2011

For Ms. Kiran Arya - 19/12/2011 - Bhatkaav aur Thahraav

सही कहा..... प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी ने.... एक "जीवन दर्शन"....

भटकाव और ठहराव.....
"भटकना मनुष्य की प्रकृति है... और ठहराव उसका मोक्ष...तो मनुष्य हमेशा से ही भटकाव की स्तिथि से ठहराव की स्तिथि की और प्रयत्नशील रहता है....लेकिन ऐसा नहीं है की उसे भटकना नहीं चाहिए...उसे जरूर भटकना चाहिए...क्योंकि...भटकाव ही वो स्तिथि है..जहाँ वह स्वयं एवम मनुष्यता का विस्तार करता है..उस अवधि में उसके लिए ठहरना...अनिवार्य नहीं... ठहराव उसे इन सब परिस्थितियों से अलग ले जाता है...और वह एक योग की स्थिथि होती है...जहाँ कर्ता (मनुष्य) कर्ता (ईश्वर) के संपर्क में आ जाता है और अपना अस्तित्व उसके अस्तित्व में मिला देता है... तो.... ठहराव तो आपका अंतिम लक्ष्य है... भटकने से...मनुष्य को ज्ञान और अनुभव के साथ -साथ जीवन को जीने का अनुभव भी मिलता है... लेकिन ये आंशिक अथवा अधूरा सत्य है......सत्य तो केवल एक ही है....वो है...मोक्ष अथवा ठहराव
"शुभ" सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १९/ १२/ २०११

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