Tuesday, November 15, 2011

for Mr. Maya Mrig - Purani Yaden...16/11/2011


वक्त के बंद पिटारे में, एक बात पुरानी है अब भी जिंदा, 
ख़त के पुर्जों में, बिखरी वो कहानी है अब भी जिंदा, 
अपने अश्कों की नमीं, जो लफ़्ज़ों से की थी तूने बयाँ,
बीच कागज़ के छिपे फूल में वो नमीं है अब भी जिंदा,
सुर्यदीप - १६/११/२०११ 

for Mr. Sanjay Kaushik Kaushik......
कागज़ के फूल कभी खुशबु नहीं देते...सिर्फ एक एहसास देते हैं...वो भी पल दो पल का...
लेकिन...वो ख़त के बिखरे पुर्जे...वो आंसुओं से भीगे हुए ख़त....हमेशा जिंदा रखते हैं इन अहसासों को...

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