तज बसनहूँ, बिनु बासना, मन करि गुरुजन ध्यान,
नरहूँ नर वो श्रेष्ठ है, सदगुरु पावत ज्ञान !!
अर्थात - जो बुरे व्यसनों का त्याग करते हुए, बिना कामना या स्वार्थ के अपने गुरु जन का ध्यान करता है. सदगुरु उसी नर को नरों में श्रेष्ठ मानते हैं और वही सदगुरु के ज्ञान को पाने के लायक है.. 'शुभ' - सुर्यदीप - ३०/११/२०११
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