Friday, November 11, 2011

For Ms. Nutan Gairola - Man ka Antardwand..... 12/11/2011

मन का अपनापन, मन ना समझे,
कभी चुप बैठे, कभी शोर करे !!
रहे चित्त सदा समाधी मैं,
पर मन की उलझन कहाँ ठौर करे !!

अंतर्दृन्द की यही परिभाषा है... मन चाहे तो भी वो एक जगह चुप नहीं बैठ सकता, उसे किसी ना किसी कारण से अपना मौन तोड़ के शब्दों के सहारे अपनी अभिव्यक्ति देनी ही होती है...यद्यपि मन का स्वभाव एक योग की तरह होता है, जो उसे प्रिय भी है..लेकिन सांसारिक विपदाएं, बाधाएं उसे मौन नहीं रहने देती और अपने मन की शांति और सुकून और योग को बनाये रखने की लिए उसे बाहरी उलझनों, कलहों, अशांतियों को दबाने के लिए, शांति स्थापित करने के लिए...मौन व्रत तोडना ही होता है.... "शुभ" सुर्यदीप

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