मित्रो, आप सभी के सुन्दर शब्दों की माला से अभिभूत हुआ...आप सभी का धन्यवाद.. :)
घट-घट काहे भटके रे घट,
घट भीतर घर ना पहचाने !
आतम रूप अनंत अनंदित,
प्रभु मारग सो ही जाने !!
हे मन, तू इधर-उधर सांसारिक भ्रमण क्यों कर रहा है, तेरे शरीर रूपी घर के भीतर क्यों नहीं झांकता, वहाँ तुझे आत्मा रूपी आत्मसुख मिलेगा, जिसको पाने का सुख अनंत है और आनंद से परिपूर्ण है, इस आनंद इस सुख को पाने के पश्चात प्रभु को पा लेना कोई बड़ी बात नहीं.
घट-घट काहे भटके रे घट,
घट भीतर घर ना पहचाने !
आतम रूप अनंत अनंदित,
प्रभु मारग सो ही जाने !!
हे मन, तू इधर-उधर सांसारिक भ्रमण क्यों कर रहा है, तेरे शरीर रूपी घर के भीतर क्यों नहीं झांकता, वहाँ तुझे आत्मा रूपी आत्मसुख मिलेगा, जिसको पाने का सुख अनंत है और आनंद से परिपूर्ण है, इस आनंद इस सुख को पाने के पश्चात प्रभु को पा लेना कोई बड़ी बात नहीं.
No comments:
Post a Comment