Friday, November 4, 2011

for Mr. Pratibhim ji - Desh ki vartman dasha par.. 05/11/2011

प्रति जी, बहुत ही ओजस्वी रचना, धन्यवाद....
देश की जो असल ताकत है वो है जनता.. जनता मतलब आम आदमी. एक आम आदमी चाहे तो आँधियों का रुख भी बदल सकता है..
लेकिन राजनीती बहुत ही भ्रष्ट होती है, राजनीति को यदि आज के दौर में परिभाषित किया जाये तो इससे बड़ा भ्रष्ट, कमीनापन और कहीं नहीं मिलेगा.
आज की राजनीति ने एक आम आदमी से उसका चैन और सुकून दौनों ही छीन लिए हैं...और उसके पैरों में मजबूरियों की ऐसी बेडी डाल दी है, कि वो चाह कर भी उठ कर खड़ा नहीं हो सकता.. राजनीती ने, भ्रष्ट शासन ने इसके इर्द-गिर्द इतनी परेशानियाँ बढा दी हैं कि वो ताउम्र उन्हीं परेशानियों में परेशान होते, उन्हीं उलझनों में उलझते अपनी जान दे देता है.
सरकार या राजनीती यही चाहती है कि एक आम आदमी के लिए सिर्फ जीना ही बहुत बड़ा काम हो जाये...उसे ये लगे कि उसे जीने के लिए किसी न किसी तरह चंद साँसें मिल जाये वही काफी है...इससे आगे वो न तो सोच पा रहा है...न ही सोचने की ताकत उसके मस्तिस्क में बची है..
आपकी ये जोशीली पंक्तियाँ लोगों को उठकर जागने को प्रेरित करती हैं...लेकिन जो लोग सो ही नहीं पा रहे हो...वो भला कैसे जाग सकते हैं...और हो भी यही रहा है..चैन और सुकून की नींद आज के आम आदमी को नसीब है ही नहीं.... लेकिन मैंने भी झरनों को अक्सर पत्थरों का सीना चीरकर बहते हुए देखा है...और यही उम्मीद है की शायद किसी दिन किसी पत्थर का कलेजा चीर कर कोई न कोई झरना जरूर बहेगा..... शुभ {सुर्यदीप} - ०५/११/२०११ 

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