आत्मसम्मान और स्वाभिमान !!
आत्मसम्मान - यह मान पूर्णतया व्यक्तिगत होता है और यह किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं के लिए व्यक्त किया गया एक संबोधन है, जो कि स्वयं के आत्म-चिंतन, आदर्शों एवं उपलब्धियों पर आधारित होता है.
स्वाभिमान - यह इस प्रकार है जिस प्रकार मनुष्य की आयु, ज्यों-ज्यों इस मान की आयु बढती जाती है, मनुष्य स्वयं को और अधिक गिराता चला जाता है. और एक दिन ऐसा आता है, जब मृत्यु या उसका पतन उसके समक्ष होता है, लेकिन उसे इस बात पर भी यकीन नहीं होता, ये स्वाभिमान है, जो कि उसको इस अंतिम सत्य को भी स्वीकार करने से रोकता है.
स्वाभिमान कई बार इंसान की परीक्षा लेता है और इस परीक्षा में वो कई बार नाकाम भी होता है. ये एक तेज शोर मचाता, बहता हुआ झरना है जो किसी गहरे कुंड में गिरता जाता है, और धीरे-धीरे इस कुंड का जल ऊपर और ऊपर की और बढ़ता जाता है, और इस प्रकार के जल में कोई पुष्प नहीं खिल सकता .
जबकि आत्मसम्मान एक प्रकार की ठहरे हुए पानी की झील है, जहाँ संतोष है, शान्ति है और अपनी स्वयं की उपलब्धियों की काई है, जहाँ सिर्फ कमल जैसे ही पुष्प खिल सकते हैं. - 21/02/2011 - for Mr. Naresh Metia
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