Monday, March 28, 2011

Mann - For Naresh Matia ji 26/02/2011


मन सम कुटिल नाही संसारा,
मन सत्संग करही भव पारा !!   {"शुभ" सुर्यदीप - २६/०२/२०११} 

"अर्थात - इस संसार में मन से बड़ा कपटी और चालाक कोई नहीं हैं, जिसमें तरह तरह की कुविचार, भावनाएं या विसंगतियां पैदा होती रहती हैं. परन्तु यदि वही मन अच्छे लोगों की संगत करता है, सद विचार रखता है तो, ये मन उसे इस भव सागर से तारने वाला भी होता है. मन और इसकी कामनाएं अनंत होती हैं और यहीं इच्छाएं मानव को सद या कुमार्ग की ओर ले जाती हैं.

ये मानव का स्वभाव है, कि वह गलतियाँ करता है, उनको छुपाने की कोशिश भी करता है, वह उन गलतियों के लिए क्षमा भी माँगता है और फिर से तैयार हो जाता है उसी या उस जैसी गलतियों को दोहराने के लिए. हर चीज़ के दो पहलू होते हैं, ये मानव के स्वभाव का एक पहलू है, दुसरे पहलू पर यदि गौर करें तो..हम पाते हैं, कुछ इंसान गलतियाँ तो करते ही हैं लेकिन उन गलतियों से सीखते भी हैं और क्षमा चाहते भी हैं और क्षमा करते भी हैं. जीवन परिवर्तन ही है और मानव और उसका स्वभाव इस परिवर्तन को दर्शाने के लिए सबसे बड़ा उदाहरण है"
for naresh ji) 

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