Thursday, March 31, 2011

For Ms. Kiran Srivastava Meetu - Tootti Aastha


परसों....शाम,  कुछ इससे मिलता जुलता वाकया मेरे साथ भी हुआ था....
मैं बस के लिए इंतज़ार कर रहा था.... देखा कि एक पुरुष और एक महिला और उनके साथ में एक बच्चा, उम्र शायद ३ साल के आस पास
तेज़ ठंडी हवाएं चल रहीं थी, और वो मेरे नज़दीक ही फुटपाथ पर बैठे थे, तीनों ही खुश थे, मुझे अच्छा लगा उन्हें खुश देखकर, बच्चा कोई हिंदी फ़िल्मी गाना गा रहा था, हाँ...पूरी लय से...अच्छी आवाज़ थी, उसी आवाज़ ने मुझे आकर्षित किया.. मैंने मुड़कर उसकी और देखा... और मुस्कुराया...वो भी..मेरी और देख कर...मुस्कुराया फिर शरमाकर..अपनी माँ के उस कमजोर से फटी ओढनी में छिप गया.. मैंने देखा.. सांवला रंग, बिखरे बाल, शरीर पर केवल एक पतला कुरता टंगा था, वो भी ऐसा कि जैसे पारदर्शी हो, उसकी हड्डियों का उभार नज़र आ रहा था.... मैंने देखा उसे सर्दी का अहसास नहीं था... और अगर था भी तो..शायद वो भूल चुका था... नंगे पैर, और कमर के नींचे कुछ नहीं पहना था....मेरा मन किया कि में उसे कुछ कपड़े खरीद कर दे दूँ, और एक जोड़ी चप्पल भी.... 
बस के आने में अभी १०-१५ बाकी थे...यह सोचकर मैं पास १० कदम के चौराहे कि और बढ़ चला, वहां जाकर देखा कि...कुछ भी नहीं था मेरे खरीदने के लिए, थोडा और आगे जाकर देखा..लेकिन निराशा ही हाथ लगी, और...मन में एक दर ये भी...था कि बस आ कर निकल जाएगी...और फिर दूसरी बस ४५ मिनट के बाद आएगी...वापस लौट के आ गया.... वो बच्चा...अभी भी..गा रहा था...खुश था...मैंने भी सोचा...कि ये बच्चा खुश है...फिर अपने निराश मन को मैंने समझाया "कहीं इसको कपड़े देकर....मैं इसको दुखी तो नहीं कर दूंगा.. कहीं इसको आदत हो गई तो.... फिर इससे ठण्ड बर्दाश्त नहीं होगी..और जरूरी तो नहीं कि हर बार इस कपड़े मिल ही जाएँ..." इसी उधेड़-बुन में था..कि बस आई और...मैं उस पर चढ़ने लगा, साथ में वो तीनों लोग भी...चढ़ गए.."मेरी आँखों में कुछ चमक आई, मैंने सोचा चलो.. इनका किराया में दे देता हूँ " यहाँ में अपनी उस अधूरी इच्छा को पूरी करना चाह रहा था जो अभी कुछ देर पहले में पूरी नहीं कर सका...यह सोचकर..मैंने जैसे ही..जेब में हाथ डाला उससे पहले...ही उस पुरुष ने १०० रूपये का नोट निकल कर कंडेक्टर को दिखा दिया...और बोला "दो टिकट मानसरोवर" मैंने जेब से हाथ वापस खींच लिया... और सोचने लगा... अगर इसके पास पैसे हैं तो ये इस बच्चे के लिए पूरे कपड़े और पैरों के लिए चप्पल क्यों नहीं खरीद रहा...शायद..ये भी यही सोच वही रही होगी जो मेरी, कि अपने बच्चे कि आदत ये खराब नहीं करना चाहता होगा... इन्हें पता है..जरूरी नहीं कि..कल शायद इनके पास ...ओढने के लिए भी कुछ नहीं हो तो...ये..सर्दी...ठण्ड या किसी भी खराब मौसम का सामना कर सके......  यही सोच रहा था कि...मुझे कंडेक्टर ने टोका..."भाई साहब आपको कहाँ जाना है" मैंने चौंककर देखा, वो तीनों ही वहां नहीं थे, फिर जेब में हाथ डाला और अपने टिकेट के पैसे कंडेक्टर को दिए और पीछे कि तरफ सीट कि तलाश में बढ़ चला.. देखा कि...किसी दो सीटों पर वो तीनों कब्ज़ा जमाये थे... बच्चा अभी भी गा रहा था....वो खुश था... 

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