पूनम जी.... बहुत सही कहा....
हवा बहुत ही खराब है,
पीने को दूध कम, ज्यादा शराब है,
पाँव जूता खुद का, पर गैर का जुराब है,
शब्द हैं जकडे हुए, हर दिल में एक अज़ाब है,
टूटते हैं घर कई, टूटते सुबह के ख्वाब हैं..
ग़रीब पेट दबोचता, अमीर के रुआब हैं,
लगे जमीं है खोखली, नहीं टिक रहा मेहराब है,
रुख हवा का बदल न पाए अभी, नहीं खड़ा कोई पहाड़ है..
"शुभ" सुर्यदीप - २८/०३/२०११
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